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अष्टम अध्ययन : विमोक्ष
सप्तम उद्देशक
षष्ठ उद्देशक में एक वस्त्रधारी मुनि एवं इंगितमरण-अनशन का उल्लेख किया गया है। प्रस्तुत उद्देशक में अचेलक मुनि एवं पादोपगमन अनशन के द्वारा समाधि मरण प्राप्त करने का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते है
मूलम्-जे भिक्खू अचेले परिवुसिए तस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ चाएमि अहं तणफासं अहियासित्तए सीयफासं अहियासित्तए, तेउफासं अहियासित्तए, दंसमसगफासं अहियासित्तए, एगयरे अन्नतरे विरूवरूवे फासे अहियासित्तए, हिरिपडिच्छायणं चऽहं नो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पेइ कडिबन्धणं धारित्तए॥2200.
छाया-यो भिक्षुः अचेलः पर्युषितः तस्य भिक्षोः एवं भवति शक्नोमि अहं तृणस्पर्श अधिसोढुम् (अध्यासयितुं) शीतस्पर्श अध्यासयितुं (अधिसोढुं) तेजःस्पर्श (उष्णस्पश) अधिसोढुं दंशमशकस्पर्श अधिसोढुं अध्यासयितुं। एकतरान् अन्यतरान् विरूपरूपान् स्पर्शान् अध्यासयितुं हीप्रच्छादनं तच्चाहं न शक्नोमि अध्यासयितुं एवं तस्य कल्पते कटिबन्धनं धर्तुम्।
पदार्थ-जे-जो प्रतिभासंपन्न। अचेले-अचेलक। भिक्खू-भिक्षु-साधु । परिवुसिए-संयम में अवस्थित है। णं-वाक्यालंकार में है। तस्स-उस। भिक्खुस्स-भिक्षु का। एवं भवइ-इस प्रकार अभिप्राय होता है कि। अहं-मैं। तणफास-तृण के स्पर्श को। अहियासित्तए-सहन करने में। चाएमि-समर्थ हूं। सीयफासे अहियासित्तए-शीत स्पर्श को सहन करने में। तेउफासं-उष्णस्पर्श को। अहियासित्तए-सहन करने में। दंसमसगफासं-डांस-मच्छर के स्पर्श को। अहियासित्तए-सहन करने में। एगयरे-एक जाति के स्पर्श। अन्नयरे-अन्य प्रकार के स्पर्श-अनुकूल या प्रतिकूल। विरूवरूवे-नाना प्रकार के। फासे-स्पर्शी