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अष्टम अध्ययन, उद्देशक 5
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सम्यक्त्वमेव समभिजानीयात् तस्य णं भिक्षोः एवं भवति स्पृष्टः अबलः अहमस्मि नालमहमस्मि गृहान्तरं संक्रमितुं भिक्षाचर्या गमनाय तदेवं वदतः परः अभिहृतं अशनं वा 4 आहृत्य दद्यात् सः पूर्वमेव आलोचयेत् आयुष्मन् ! न खलु मे कल्पते अभिहृतं अशनं वा 4 भोक्तुं वा पातुं वा अन्यद् वा एतत् प्रकारम्।
पदार्थ-जे-जो। भिक्खू-भिक्षु-साधु। दोहिं वत्थेहि-दो वस्त्रों और। परिवुसिए-युक्त है। पायत्तइएहिं-तृतीय-तीसरे पात्र। णं-वाक्यालंकार में है। तस्स-उस भिक्षु। नो एवं भवइ-मन में यह भावना नहीं होती कि। तइयं वत्थं जाइस्सामि-मैं तीसरे वस्त्र की याचना करूंगा। से-वह भिक्ष। अहेसणिज्जाइं-यदि उसके दो वस्त्रों में कमी हो तो वह निर्दोष । वत्थाई-वस्त्रों की। जाइज्जा-याचना करे। जाव-यावत्-शेष विषय पूर्ववत् समझें। एवं खु-इस प्रकार निश्चय ही। तस्स-उस। भिक्खुस्स-भिक्षु का। सामग्गियं-यह आचार है। अह-अब। पुण-पुनः। एवंजाणिज्जा-इस प्रकार जानना चाहिए कि। खलु-निश्चय ही। हेमंते-हेमन्त काल। उववाइक्कन्ते-अतिक्रान्त व्यतीत हो गया है और। गिम्हे पडिवन्ने-गीष्म काल आ गया है, तब। अहापरिज्जुन्नाइं वत्थाई-वह परिजीर्ण हुए वस्त्रों का। परिलविज्जा-परिष्ठापन करे त्याग कर दे। अदुवा-अथवा। संतरुत्तरे-यदि शीतादिकी संभावना हो तो वस्त्र धारण करे या अपने पास रखे। अदुवा-अथवा। ओमचेले-वस्त्र कम कर दे। अदुवा-अथवा। एग साडे-एक शाटक उत्तरीय वस्त्र चादर मात्र रखे। अदुवा-अथवा। अचेले-मुख वस्त्रिका
और रजोहरण को छोड़ कर अन्य सब वस्त्रों का त्याग करके अचेलक बन जाए। लाघवियं-इस प्रकार लाघवता को। आगममाणे-प्राप्त हुए। से-मुनि को। तवे-तप-कायक्लेशरूप तप। अभिसमन्नागए-सम्मुख। भवइ-होता है। जमेयं-जिसका। भगवया-भगवान महावीर ने। पवेइयं-प्रतिपादन किया है। तमेव-उसे। अभिसमिच्चा-सम्यक्तया भली-भांति जानकर। सव्वओ-सर्व प्रकार से। सव्वत्ताए-सर्वात्मभाव से। सम्मत्तमेव-सम्यक्त्व या समभाव को। समभिजाणिया-सम्यक् प्रकार से जाने। णं-वाक्यालंकार में है। जस्स-जिस। भिक्खुस्स-भिक्षु का। एवं-इस प्रकार अध्यवसाय। भवइ-होता है, कि । पुट्ठो