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अष्टम अध्ययन, उद्देशक 4
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पूर्वक धर्म एवं संयम की सुरक्षा के लिए आत्महत्या करना पाप नहीं, बल्कि धर्म है। वह मृत्यु आत्मा का विकास करने वाली है। ____ अस्तु, प्रस्तुत सूत्र अपवाद स्वरूप है। धर्म-संकट के समय ही साधक को विषपान करके या गले में फंदा डालकर मरने की आज्ञा दी गई है। आगम में कहा गया है कि भगवान ने दो प्रकार से मरने की आज्ञा नहीं दी है, परन्तु विशेष परिस्थिति में उसका निषेध भी नहीं किया है। इसी अपेक्षा से प्रस्तुत उद्देशक में संयम को सुरक्षित रखने के लिए मृत्यु को स्वीकार करने की आज्ञा दी है।
'त्तिबेमि' की व्याख्या पूर्ववत् समझें।
॥ चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥
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1. दो मरणाई जाव णो णिच्चं अब्भणुन्नाइं भवन्ति कारणेणं पुण अप्पडिकुट्ठाई तंजहा-देहाणसे चेव, गिद्धपिढें चेव।
. -स्थानाङ्ग सूत्र, 2, 4