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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
खलु तवार्थाय अशनं वा, पानं वा, खादिमं वा, स्वादिमं वा, वस्त्रं वा, पतद्ग्रहं (पात्र) वा, कम्बलं वा, पादप्रोञ्छनं, प्राणिनः, भूतानि, जीवान्-सत्त्वान्सामरभ्य समुद्दिश्य क्रीतं, प्रामित्यं, आच्छिद्यं, अनिसृष्टं, अभिहृतमाहृत्य ददामि, आवसथं वा समुच्छृणोमि तद् भुझ्व वत्स आयुष्मन् श्रमण! भिक्षुस्तं गृहपतिं समनसं सवचसं प्रत्याचक्षीत्-आयुष्मन् गृहपते! नो खलु ते वचनमाद्रिये, न खलु ते वचनं परिजानामि यस्त्वं ममार्थाय अशनंवा 4, वस्त्रं वा 4, प्राणिनो वा 4 समारम्भ समुद्दिश्य क्रीतं, प्रामित्यं आच्छिद्यमनिसृष्टमभिहृतमाहृत्य ददासि आवसथं वा समुच्छृणोषि स (अहं) विरतः आयुष्मन् गृहपते! एतस्याकरणतया।
पदार्थ-से-वह सावध व्यापार से निवृत्त हुआ। भिक्खू-भिक्षु । परिक्कमिज्जभिक्षा एवं अन्य कार्य के लिए पराक्रम करे। वा-अथवा, अपेक्षा अर्थ में जानना। चिट्ठिज्ज वा-खड़ा रहे। निसीइज्ज वा-बैठे या। तुयट्टिज वा-करवट बदले या शयन करे। सुसाणंसि वा-श्मशान में। सुन्नागारंसि वा-शून्यागार-शून्य घर में। गिरिगुहुंसि वा-पर्वत की गुफा में। रुक्खमूलंसि वा-वृक्ष के मूल में-वृक्ष के नीचे। कुभाराययणंसि वा-कुम्भकार की शाला में। हुरत्था वा-ग्राम के बाहर अन्यत्र । कहिंचि-किसी स्थान पर। विहरमाणं-विचरते हुए। तं-उस। भिक्खु-भिक्षु को। गाहावई-कोई गृहपति। उवसंकमित्तु-आकर। बूया-ऐसा कहे कि। आउसंतो समणा-हे आयुष्मन् श्रमण! खलु-वाक्यालंकारार्थ में है। अहं-मैं। तव-तुम्हारे। अट्ठाए-लिये। असणं वा-अन्न। पाणं वा-पानी। खाइमं वा-खाद्य पदार्थमिठाई आदि। साइमं वा-स्वादिम-लवंगादि पदार्थ। वत्थं वा-वस्त्र। पडिग्गहं वा-काष्ठादि के पात्र। कंबलं वा-कम्बल-ऊन का वस्त्र। पायपुञ्छणं-पाद प्रोंछन-रजोहरण। पाणाइं-प्राणियों। भूयाई-भूतों। जीवाई-जीवों। सत्ताई-सत्वों का। समारब्भ-उपमर्दन कर के। समुद्दिस्स-साधु के उद्देश्य से। कीयं-खरीद कर। पामिच्चं-किसी से उधार लेकर। अच्छिज्जं-किसी से छीन कर। अणिसट्ठदूसरे की वस्तु को बिना आज्ञा लेकर। अभिहडं-अपने घर से। आहटु-लाकर। चेएमि-देता हूं और। आवसहं वा-आप के ठहरने लिए स्थान-उपाश्रय बनवाता हूं और। समुस्सिणोमि-उनका जीर्णोद्धार करवा देता हूं-पुराने बने हुए उपाश्रय का नया संस्कार करवा देता हूं। से-वह कहे कि। आउसंतो समणा-हे आयुष्मान् श्रमण! आप। भुंजह-आहार-पानी करो और। वहसं-उस उपाश्रय में रहो।