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________________ अष्टम अध्ययन : विमोक्ष द्वितीय उद्देशक प्रथम उद्देशक में असम्बद्ध साधु के साथ सम्बन्ध नहीं रखने का उपदेश दिया गया है । परन्तु, इसके लिए अकल्पनीय पदार्थों - आहार- पानी, स्थान, वस्त्र, पात्र आदि का त्याग करना भी आवश्यक है। अतः साधु को किस तरह का आहार -पानी लेना चाहिए एवं कैसे स्थान में रहना चाहिए, इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम् - से भिक्खू परिक्कमिज्ज वा, चिट्ठज्ज वा, निसीइज्ज वा, तुयट्टिज्ज वा, सुसाणंसि वा सुन्नागारंसि वा, गिरिगुहंसि वा, रुक्खमूलसि वा, कुम्भाराययणंसि वा, हुरत्था वा, कहिंचि विहरमाणं तं भिक्खुं उवसंकमित्तु गाहावई बूया आउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्ठा असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायपुञ्छणं वा, पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स, कीयं, पामिच्चं अच्छिज्जं, अणिसट्ठ, अभिहडं, आहट्टु, ' चेमि आवसहं वा समुसिणोमि से भुञ्जह, वसह, आउसंतो समणा ! भिक्खू तं गाहावई समणसं सवयसं पडियाइक्खे आउसंतो ! गाहावई न खलु ते वयणं आढामि, नो खलु ते वयणं परिज्जाणामि, जो तुमं मम अट्ठा असणं वा 4 वत्थं वा 4 पाणाई वा 4 समारम्भ समुद्दिस्स कीयं, पामिच्चं, अच्छिज्जं अणिसट्ठ, अभिहडं, आहट्टु, चेसि आवसहं वा समुस्सिणासि, से विरओ आउसो गाहावई ! एस्स अकरणयाए॥199॥ छाया - स भिक्षुः पराक्रमेद्वा, तिष्ठेद्वा, निषीदेद्वा, त्वग्वर्तेद्वा, श्मशाने वा, शून्यागारे वा, गिरिगुहायां वा, वृक्षमूले वा, कुम्भकारायतने वा, अन्यत्र वा, क्वचिद्विहरन्तं तं भिक्षुमुपसंक्रम्य गृहपतिब्रूयात् - आयुष्मन् भो श्रमण ! अहं
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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