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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 3
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हिन्दी-विवेचन
यह हम देख चुके हैं कि मुनि को साधक अवस्था में कुछ उपकरण रखने पड़ते हैं। यह बात अलग है कि उपकरणों की संख्या में कुछ अन्तर रहता है। जैसे जिनकल्पी मुनि-जो जंगल एवं पर्वतों की गुफाओं में रहते हैं, के लिए मुखवस्त्रिका और रजोहरण दो उपकरण ही पर्याप्त हैं, तो स्थविरकल्पी के लिए 14 उपकरण बताए गए हैं। इनमें भी कमी की जा सकती है। इन उपकरणों में कमी करना तपश्चर्या है। इससे कर्मों की निर्जरा होती है। अतः साधक को कषायों के त्याग के साथ-साथ यथाशक्य उपकरणों में कमी करने के लिए भी प्रयत्नशील रहना चाहिए। ___ मुनि का मूल उद्देश्य आत्मविकास है। आत्मविकास के लिए ही वह आहारपानी एवं वस्त्र-पात्र आदि उपकरणों को स्वीकार करता है। ये उपकरण केवल संयम-साधना के साधन हैं, न कि साध्य। अतः वह उपकरणों को रखते हुए भी उनकी विशेष चिन्ता नहीं करता और न उनमें आसक्त ही रहता है। उसका मन एवं उसका चिन्तन सदा-सर्वदा संयमपरिपालन में ही संलग्न रहता है। क्योंकि वह इस बात को जानता है कि संयम से ही कर्मों का नाश होगा और कर्म क्षय होने पर ही आत्मा का विकास हो सकेगा। अतः वह सदा संयम-पालन में ही जागरूक रहता है।
कभी वस्त्र आदि के फट जाने पर तथा समय पर शुद्ध-एषणिक वस्त्र के न मिलने पर वह उसके लिए चिन्ता नहीं करता, आर्त-रौद्र ध्यान नहीं करता। ऐसे समय में भी वह समभावपूर्वक अपनी साधना में संलग्न रहता है। वह वस्त्र की कमी के कारण होने वाले शीत, दंश-मशक एवं तृण स्पर्श के परीषहों को बिना किसी खेद के सहन करता है। वह अपने मन में सोचता-विचारता है कि भगवान महावीर ने इसी धर्म का या समभाव की साधना करने का उपदेश दिया है और अनेक महापुरुषों ने वर्षों एवं पूर्वो' तक इस शुद्ध धर्म एवं संयम का परिपालन करके आत्मा को कर्मों से सर्वथा अनावृत कर लिया है। अतः मुझे भी इसी धर्म का पालन करके निष्कर्म बनना
1. 84 लाख वर्षों को 84 लाख वर्षों से गुणा करने पर जो गुणनफल आता है, उतने
वर्षों का एक पूर्व होता है, अर्थात् 84 लाख x 84लाख = 70 लाख करोड़, 56 हजार करोड़ वर्ष (70, 560000000000)।