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________________ षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 2 665 शान्तिपूर्वक सहन करता हुआ विचरता है। इसी कारण वह अपने अभीष्ट को सिद्ध करने में सफल होता है। हिन्दी-विवेचन ___ साधना में निष्ठा एवं सहिष्णुता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। निष्ठा-श्रद्धा के बिना संयम का परिपालन नहीं किया जा सकता। इसलिए साधक को धर्मोपकरणों के साथ संयम-साधना में सदा संलग्न रहना चाहिए। साधक चाहे जितनी उत्कृष्ट साधना में संलग्न रहे; फिर भी जब तक शरीर है, तब तक कुछ उपकरणों की आवश्यकता रहती ही है। परन्तु, वह उन उपकरणों को भोग-विलास की दृष्टि से नहीं रखता, केवल साधना में सहायक होने के कारण अनासक्त भाव से स्वीकार करता है। अतः उसके उपकरण मर्यादित, सीधे-सादे एवं साधना में तेजस्विता उत्पन्न करने वाले होते हैं। क्योंकि वेश-भूषा का भी जीवन पर प्रभाव होता है। यदि एक सैनिक को भोग-विलास के समय की पोशाक पहना दी जाए तो उससे उसके जीवन में स्फूर्ति के स्थान में शिथिलता दिखाई देगी और उसे कोई भी सैनिक नहीं समझेगा। सैनिक के लिए उसके कार्य के अनुरूप चुस्त पोशाक होनी आवश्यक है। इसी प्रकार साधक के लिए उसकी साधना एवं त्याग वृत्ति को प्रकट करने वाली सीधी-सादी एवं सात्त्विक वेशभूषा होनी चाहिए। इसलिए आगम में साधु के लिए मुख-वस्त्रिका, रजोहरण, चद्दर एवं चोलपट्टक (धोती के स्थान में पहनने का वस्त्र) रखने का विधान है। ___ साधना का क्षेत्र केवल उपकरणों तक ही सीमित नहीं है। उपकरण साधना में सहायक हैं, परन्तु साधना का मूल कार्य है अपने अन्दर में स्थित राग-द्वेष, काम-क्रोध, तृष्णा-आसक्ति आदि अन्तरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना। अतः साधक को प्रत्येक परिस्थिति में समभाव को बनाए रखना चाहिए। उसे कोई वन्दन-नमस्कार करे तो प्रसन्न नहीं होना चाहिए और यदि कोई तिरस्कार एवं प्रताड़न करे तो रुष्ट एवं क्रुद्ध नहीं होना चाहिए। उसे दोनों अवस्थाओं में एकरूप रहना चाहिए और दोनों व्यक्तियों के लिए एक समान कल्याण की भावना रखनी चाहिए। यही साधुत्व की साधना है; जिसके द्वारा वह कर्मों की निर्जरा करता हुआ निष्कर्म बनने का प्रत्यन करता है। प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'अचेलक' शब्द में 'अ' अव्यय का पूर्णतः निषेध अर्थ में
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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