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षष्ठ अध्ययन : धुत
प्रथम उद्देशक
प्रस्तुत अध्ययन का नाम धुत अध्ययन है। धुत शब्द का अर्थ है-मल का निवारण करना। यह दो प्रकार का है-द्रव्य धुत और भाव धुत। वस्त्र आदि के मैल को दूर करके उन्हें स्वच्छ-साफ बनाने को द्रव्य धुत कहा है और परीषह एवं उपसर्गों को सहन कर अष्टकर्म मल को शुद्ध कर आन्तरिक मल को निवारण करने वाली आत्मा को भाव धुत-शुद्ध-बुद्ध कहा गहा है। प्रस्तुत अध्ययन में आभ्यन्तर राग-द्वेष आदि विकार एवं बाह्य भोगोपभोग के साधन आदि के त्याग का एवं आत्मा को शुद्ध करने की प्रक्रिया का उपदेश दिया गया है। आत्मा को शुद्ध करने की प्रक्रिया को धुत शब्द से अभिव्यक्त किया जाता रहा है। बौद्ध ग्रन्थों में भी इसके लिए धुत शब्द का प्रयोग मिलता है। उनमें भी धुत शब्द के उक्त नियुक्ति सम्मत अर्थ पाए जाते हैं।
भाव धुत के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्-ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से नरे, जस्सइमाओ जाइओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवंति, आघाइ से नाणमणेलिस, से किट्टइ तेसिं समुट्ठियाणं निक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पन्नाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं, एवं (अवि) एगे महावीरा विपरिक्कमंति, पासह एगे अवसीयमाणे अणत्तपन्ने से बेमि, से जहावि (सेवि) कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छन्नपलासे उम्मगं से नो लहइ भंजगा इव संनिवेसं नो चयंति एवं (अवि) एगे अणेगरूवेहिं कुलेहिं जाया रूवेहिं सत्ता कलुणं थणंति नियाणओ ते न लभंति मोक्खं, अह पास तेहिं कुलेहिं आयत्ताए जाया।
गंडी अहवा कोढी, रायंसी अवमारियं । काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा॥14॥