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________________ पंचम अध्ययन, उद्देशक 6 633 " लेकर कहे गए हैं। इसलिए सर्वज्ञ के अतिरिक्त किसी के वचनों पर श्रद्धा नहीं होती । वह उसके आधार पर अन्य मत की परीक्षा करता है और हेय - उपादेय की पहचान करके हेय का त्याग करता है और उपादेय को स्वीकार करता है । । जैसे - जैनागमों में शब्द पौद्गलिक माना है और नैयायिक - वैशेषिक आदि शब्द को आकाश का गुण मानते हैं। परन्तु यह सत्य नहीं है, क्योंकि शब्द रूपवान है और आकाश रूप रहित है। रूप रहित पदार्थ का गुण रूप युक्त पदार्थ हो नहीं सकता। इसलिए शब्द भी रूपवान होने के कारण आकाश का गुण नहीं हो सकता । आज के वैज्ञानिक अविष्कारों ने भी शब्द की पौद्गलिकता को स्पष्ट कर दिया है। इससे स्पष्ट है कि सर्वज्ञ के वचनों में असत्यता नहीं होती । इस प्रकार साधक पदार्थों का यथार्थ ज्ञान करके सर्वज्ञ भगवान की आज्ञा के अनुरूप संयम का पालन करते हैं। पदार्थों का ज्ञान तीन प्रकार से होता है - 1 - सन्मति से—ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय एवं क्षयोपशम से सन्मति प्रस्फुटित होती है और उससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान होता है । 2 - तीर्थंकर के उपदेश से और 3 - आचार्य के उपदेश से भी पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का बोध होता है । * पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का बोध हो जाने के पश्चात् साधक को क्या करना चाहिए, इस संबन्ध में सूत्रकार कहते हैं मूलम् - निद्देसं नाइवट्टेज्जा मेहावी सुपडिलेहिया सव्वओ सव्वप्पणा सम्मं समभिणणाय, इह आरामं परिण्णाए अल्लीणे गुत्ते परिव्वए निट्ठियठी वीरे आगमेण सया परक्कमेज्जासि तिबेमि ॥169 ॥ छाया-1 - निर्देशं नातिवर्तेत मेधावी सुप्रतिलेख्य सर्वतः सर्वात्मना सम्यक् समभिज्ञाय इह आरामं परिज्ञाय आलीनो गुप्तश्च परिव्रजेत् निष्ठितार्थी वीरः आगमेन सदा पराक्रमेथाः इति ब्रवीमि । पदार्थ - मेहावी - बुद्धिमान साधु । निद्देसं - तीर्थंकरादि के उपदेश को । नाइवट्टेज्जा - अतिक्रम न करे - उल्लंघन न करे । सुपडिलेहिया - भली प्रकार से प्रतिलेखन कर, फिर । सव्वओ - सर्व प्रकार से - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से । सव्वप्पणा - सर्वात्मना - सामान्य विशेष रूप से पदार्थों का पर्यालोचन करके । सम्मं - सम्यक् प्रकार से । समभिण्णाय - सम्यग्वाद और मिथ्यावाद को जानकर,
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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