________________
58
आर्य है, अतः वह आमगन्ध' का त्याग करके निरामगन्ध होकर विचरण करे। ___ छठे उद्देशक में बताया गया है कि मुनि लोक-गृहस्थ के घरों से आहारादि की गवेषणा करके जीवन का निर्वाह करता है, फिर भी वह उनमें एवं आहारादि पदार्थों में आसक्त न बने। क्योंकि ममत्व भाव रखना परिग्रह है, परिग्रह बन्धन है और बन्धन संसार है। अतः निष्परिग्रही मुनि ममत्व-भाव से सर्वथा रहित होकर विचरण करे, क्योंकि निष्परिग्रही साधक ही परमार्थ मोक्षमार्ग को जान सकता है और जो उसे जानता है, वही उसे पा सकता है।
तृतीय अध्ययन - प्रस्तुत अध्ययन का नाम है-शीतोष्णीय। यह चार उद्देशकों में विभक्त है। साधारणतः शीत का अर्थ ठंडा और उष्ण का अर्थ गरम होता है। परन्तु नियुक्तिकार ने इनके आध्यात्मिक अर्थों का भी उल्लेख किया है। उसमें परीषह (कष्ट), प्रमाद, उपशम, विरति और सुख को शीत तथा परीषह, तप, उद्यम, कषाय, शोक, वेद, कामाभिलाषा, अरति और दुःख को उष्ण कहा है। परीषहों को शीत और उष्ण दोनों में गिना गया है। स्त्री और सत्कार परीषह को शीत और शेष 20 परीषहों को उष्ण कहा है। एक विचारधारा यह भी है कि तीव्र-परिणामी उष्ण है और मंद-परिणामी शीत।
। प्रस्तुत अध्ययन में इन्हीं आभ्यन्तरिक एवं बाह्य शीतोष्ण की चर्चा की गई है। इसमें कहा गया है कि श्रमण साधक सदा शीत-उष्ण स्पर्श, सुख-दुःख, परीषह आदि को सहन करे और तप, संयम एवं उपशम भाव में संलग्न रहे और काम-भोगों का आसेवन न करे।
1. आम शब्द का वैदिक अर्थ अपक्व या कच्चा मांस या अन्न आदि था। वैद्यक ग्रंथों में
उसका अर्थ 'रोग' भी हुआ। पालि ग्रन्थ में इसका अर्थ विस्तार होकर 'पाप' होने लगा, शारीरिक रोग की तरह पाप भी आध्यात्मिक रोग है। वहां निराम का अर्थ है--निष्पाप, क्लेश रहित। यहां आम-गन्ध का अर्थ होगा-'पाप की गन्ध' । परन्तु टीकाकार यहां आमगन्ध का पारिभाषिक अर्थ करते हैं-आधाकर्मादि दोषों से दूषित अशुद्ध आहार। अतः निरामगन्ध का अर्थ हुआ-निर्दोष आहार।
-आचारांग टीका; पृ. 50