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________________ पंचम अध्ययन : लोकसार . द्वितीय उद्देशक प्रथम उद्देशक में मुनित्व की साधना से दूर रहे हुए व्यक्तियों के विषय में वर्णन किया गया था। प्रस्तुत उद्देशक में उन साधकों के जीवन का विवेचन किया गया है, जो मुनित्व की साधना में संलग्न रहते हैं। मुनि कौन हो सकता है, इसका विवेचन करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-आवन्ती केयावन्ती लोए अणारम्भजीविणो तेसु, एत्थोवरए तं झोसमाणे, अयं संधीति अदक्खू, जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणेत्ति उन्नेसी एस मग्गे आरिएहिं पवेइए, उठ्ठिए नो पमायए, जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं, पुढोछंदा इह माणवा पुढो दुक्खं पवेइयं से अविहिंसमाणे अणवयमाणे, पुटठो फासे विपणुन्नए1147॥ ___ छाया-यावन्तः केचन लोके अनारम्भजीविनः तेषु अत्रोपरतः तत् झोषयन् अयं सन्धिरिति अद्राक्षीत् योऽस्य विग्रहस्य अयं क्षण इति अन्वेषी एष मार्गः आर्यैः प्रवेदितः उत्थितः न प्रमादयेत् ज्ञात्वा दुःखं प्रत्येक सातं पृथक् छन्दाः इह मानवाः पृथग् दुःखं प्रवेदितं स अहिंसन् अनपवदन् स्पृष्टः स्पर्शान् विप्रणोदयेत्-विप्रेरयेत्। पदार्थ-आवंती-जितने। केयावंती-कितने एक। लोए-लोक में। अणारंभजीविणो-आरम्भ से रहित आजीविका करने वाले। तेसु-उन आरम्भ युक्त गृहस्थों में अनारम्भ जीवी होते हैं, तथा। एत्थोवरए-इस सावद्यारम्भ से उपरत हैं। तं-उस सावद्यारम्भ से आये हुए पाप कर्म को। झोसमाणे-क्षय करता हुआ मुनि भाव धारण करता है। अयं-यह। संधीति-अवसर इस प्रकार । अदक्खूदेखे। जे-जो। इमस्स-इस। विग्गहस्स-औदारिक शरीर तथा। अयं-यह। खणेत्ति-क्षण। अन्नेसी-इनके अन्वेषण करने वाला, सदैव ही अप्रमत्त होता है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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