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________________ चतुर्थ अध्ययन, उद्देशक 2 551 भागवत के मानने वालों का कहना है कि 25 तत्त्वों का परिज्ञान कर लेने से जीव का मोक्ष हो जाता है। यह आत्मा सर्वव्यापी, निष्क्रिय निर्गुण और चेतन है, संसार में निर्विशेष सामान्य ही एक तत्त्व है। ___ वैशेषिक दर्शन की मान्यता है कि द्रव्य आदि 6 पदार्थों का ज्ञान कर लेने से मोक्ष हो जाता है। यह आत्मा समवाय, ज्ञान, इच्छा, प्रयत्न, द्वेष आदि गुणों से युक्त है और सामान्य एवं विशेष दोनों परस्पर निरपेक्ष और स्वतन्त्र तत्त्व हैं। बौद्ध विचारकों ने आत्मा को स्वतन्त्र तत्त्व नहीं माना। उनके विचार में सभी पदार्थ क्षणिक हैं। आत्मा भी प्रतिक्षण नई-नई उत्पन्न होती है और पुरानी आत्मा का नाश होता रहता है। इस प्रकार वह अनित्य है, अशाश्वत है। ___मीमांसक-सर्वज्ञ एवं मुक्ति को नहीं मानते। कुछ विचारक पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय पदार्थों को सजीव नहीं मानते। कुछ वनस्पति को निर्जीव मानते हैं। कुछ नास्तिक शरीर के अतिरिक्त आत्मा की सत्ता को ही नहीं मानते। कुछ लोगों का कहना है कि हमारे महर्षि सब जीवों को जानते हैं। उनका उपदेश है कि वेद-विहित यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठान में किसी भी प्राणी का वध करना या उसके अंगों का छेदन-भेदन करना दोषयुक्त नहीं है। उक्त क्रिया से उन जीवों का कल्याण होता है, उन्हें स्वर्ग आदि शुभ गति की प्राप्ति होती है । वेद-विहित यज्ञ में की गई हिंसा हिंसा नहीं है। वह मांस अभक्ष्य नहीं, भक्ष्य है। जो व्यक्ति वह मांस नहीं खाता है, वह प्रेत्य होता है। श्राद्ध और मधुपर्क में आमन्त्रित व्यक्ति यदि मांस नहीं खाता है, तो वह मरकर 21 जन्म तक पशु होता है । इस प्रकार वेद-विहित हिंसा में पाप नहीं लगता। उसमें धर्म ही होता है। 1. यज्ञार्थं पशव : सृष्टः स्वयमेव स्वयंभुवा, यज्ञश्च भूत्यै सर्वस्य तस्माद्यज्ञेवधोऽवधः । औषध यः पशवोवृक्षास्तिर्यञ्चः पक्षिणस्तथा, यज्ञार्थ निधनं प्राप्ता प्राप्नुवन्त्यसृती पुनः।। ___ -मनुस्मृति, 5 38, 40 2. नियुक्तस्तु यथान्यायं यो मांसं नात्ति मानवः, ___स प्रेत्य पशुतां यातिसंभवानेक विशंतिम्। -मनु, 5, 35 3. श्राद्धे मधुपर्के च यथान्यायंनियुक्तः सन् यो मनुष्यो मांस न खादति स मृतः सन् एकविंशति जन्मानि पशुर्भवति।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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