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________________ 550 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध सभी जीव और सत्त्व (यज्ञादि के वास्ते; हनन करने चाहिए), उनसे बलात् काम लेना चाहिए, उनको परिताप देना चाहिए, उनको पकड़ना और मरणान्त कष्ट पहुंचाना चाहिए, धार्मिक क्रियानुष्ठान के सम्पादनार्थ इस काम में कोई दोष नहीं है, परन्तु यह अनार्य वचन है, अर्थात् जो आर्य नहीं, यह उनका कथन है, और जो आर्य हैं, वे इस प्रकार कहते हैं कि तुमने भली प्रकार से नहीं देखा, भली प्रकार से नहीं सुना, भली प्रकार से नहीं माना, भली प्रकार से नहीं जाना, और तुमने ऊंची, नीची और तिरछी आदि सभी दिशाओं में भली प्रकार से पर्यालोचन भी नहीं किया। जो कि तुम इस प्रकार कहते हो, इस प्रकार भाषण करते हो, इस प्रकार प्ररूपण करते हो और इस प्रकार प्रज्ञापन करते हो कि-सर्व प्राणी, सर्व भूत, सर्व जीव और सर्व सत्त्व (यज्ञादि के वास्ते मारने चाहिए), जान लो कि इसमें कोई दोष नहीं? परन्तु यह कथन अनार्यों का है, आर्यों का नहीं? और जो हम आर्य हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार भाषण करते, इस प्रकार प्ररूपणा और प्रज्ञापना-करते हैं कि सभी प्राणी, सभी भूत, सभी जीव और सभी सत्त्व न तो मारने चाहिए, न उनसे बलात् काम कराना चाहिए, न उन्हें सन्ताप देना चाहिए एवं न उन्हें पकड़ना और न उन पर उपद्रव करना चाहिए। यहां पर भी जान लो, समझ लो कि इस काम में कोई भी दोष नहीं है! यह आर्य वचन है, अर्थात् आर्य पुरुषों का कथन है जो कि निर्दोष है। हे प्रवादियो! तुम पहले अपना समय-आगम विहित सिद्धांत स्थापित करो, फिर मैं तुम से प्रत्येक को पूलूंगा कि दुःख साता में है या असाता, में? यदि कोई इसका यथार्थ उत्तर दे कि दुःख असाता में है साता में नहीं तो उनके प्रति इस प्रकार कहना चाहिए कि सब प्राणियों को, सब भूतों को, सब जीवों और सब सत्त्वों को असाता, अनिर्वृत्ति रूप है, महा भय रूप है और महादुःख रूप है। इस प्रकार मैं कहता हूँ। हिन्दी-विवेचन प्रस्तुत सूत्र में आर्य-अनार्य या- सम्यक्त्व-मिथ्यात्व का स्पष्ट एवं सरस विवेचन किया गया है। दुनिया में अनेक विचारक हैं। परन्तु तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान न होने से उन सबकी विचारधाराएं परस्पर टकराती हैं। इसलिए श्रमण-बौद्ध, सांख्य आदि मत के भिक्षु और ब्राह्मणों-वैदिक धर्म को मानने वालों का परस्पर संघर्ष होता रहता है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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