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________________ तृतीय अध्ययन, उद्देशक 2 497 .. पदार्थ-एवं-इस प्रकार। इच्चेवेगे-लोभवश भरत चक्रवर्ती आदि राजाओं ने। अट्ठ-धन-ऐवद्यं आदि भोगों को। आसेवित्ता-आसेवन-भोगकर भी। समुट्ठिया-संयम साधना में संलग्न हो गए। तम्हा-इसलिए। तं-उन त्यागे हुए भोगों को। विइयं-दूसरी बार। नो सेवे-सेवन नहीं करे अर्थात् हिंसा, झूठ आदि असंयम में प्रवृत्ति न करे। निस्सारं-विषयों की निस्सारता को। पासिय-देखकर। नाणी-ज्ञानी पुरुष। उववायं-चवणं-देव भव को जन्म-मृत्यु के प्रवाह में प्रवहमान। णच्चा-जानकर, विषय-भोगों का सेवन न करे। अण्णाणं-ज्ञानादि। चर-ग्रहण करे। माहणे-वह महान-मुनि है, अतः। न छणे-न स्वयं हिंसा करे। न छणावए-न दूसरे व्यक्ति से हिंसा करवाए। छणतं-हिंसा करते हुए व्यक्ति को। नाणुसमणुजाणइ-अच्छा नहीं समझता है। अब चौथे व्रत के विषय में कहते हैं। निव्विंद नन्दिं-विषय-भोगों से उत्पन्न हुए आनन्द को घृणित समझकर। पयासुस्त्रियों में। अरए-अनासक्त-राग रहित रहे। अणोमदंसी-सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र से युक्त, वह मुनि। पावेहिं कम्मेहि-पाप कर्मों से। निस्सण्णे-निवृत्त हो जाता है। मूलार्थ-लोभ के वश प्राप्त किए गए धन-वैभव एवं विषय-भोगों का आसेवन करके भी कई एक महापुरुष फिर से सावधान हो जाते हैं। दूसरी बार वे उन त्याज्य भोगों को भोगने की इच्छा नहीं करते। भोगों को निस्सार एवं देव भव को भी जन्म और मृत्यु रूप जानकर वे विषय-वासना में आसक्त नहीं होते। अतः हे मुनि! तू भोगों को त्याग, ज्ञान, दर्शन और चारित्र को स्वीकार कर अथवा संयमपथ पर चल। __संयमशील मुनि स्वयं हिंसा नहीं करता, न अन्य से हिंसा करवाता है और न हिंसा करने वाले को भी अच्छा समझता है। इसी प्रकार रत्नत्रय से युक्त मुनि विषय-भोगों से उत्पन्न आनन्द को घृणित समझकर स्त्रियों में आसक्त नहीं बनता। वह संयम की आराधना करके पाप कर्म से मुक्त हो जाता है। हिन्दी-विवेचन - मनुष्य चलते-चलते गिरता भी है और उठता भी है। ऐसा नहीं है कि जो गिर गया, वह गिरने के बाद कभी उठता ही नहीं है। यही स्थिति आध्यात्मिक जीवन की है। हिंसा आदि दोषों में प्रवृत्त आत्मा पतन के गर्त में गिरती जाती है। परन्तु अपने
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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