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________________ तृतीय अध्ययन, उद्देशक 2 मूलम् - उम्मुञ्च पासं इह मच्चिएहिं, आरंभजीवी उभयाणुपस्सी कामेसु गिद्धा निचयं करंति, ससिच्चमाणा पुणरिति गमं ॥ 5 ॥ छाया - उन्मुञ्च पाशमिह मर्त्यैः, आरम्भजीवी उभयानुदर्शी । कामेषु गृद्धाः निचयं कुर्वन्ति, संसिच्यमानाः पुनर्यान्ति गर्भम्॥ 487 पदार्थ - इह - इस मनुष्य लोक में | मच्चिएहिं - मनुष्यों से । पासं-राग-स्नेह बन्धन को । उम्मुञ्च-तोड़ दे। और यह जान कि जो व्यक्ति । आरंभजीवी - आरंभ से आजीविका करने वाले हैं । उभयाणुपस्सी - शारीरिक एवं मानसिक उभय सुखों } द्रष्टा - अभिलाषी । कामेसु गिद्धा - काम-भोग में मूर्छित हैं, वेनिचयं करंति - कर्मों का उपचय करते हैं। पुण - और फिर । संसिच्चमाणा - काम - भोग रूप जल से भव भ्रमण रूप कर्म वृक्ष का सिञ्चन करते हुए । गन्धं - गर्भ को। एंति-प्राप्त होते हैं। G मूलार्थ-हे आर्य! इस मनुष्य लोक में मनुष्यों के साथ तेरा जो राग भाव है, स्नेह बन्धन है, उसे तू छोड़ दे और यह जान ले कि जो व्यक्ति आरम्भ से आजीविका करने वाले, शारीरिक एवं मानसिक सुखाभिलषी और काम भोगों में आसक्त हैं वे पाप कर्मों का उपचय करते हैं और भवभ्रमण रूप कर्मवृक्ष का सिंचन करते हुए बार-बार गर्भ में आते हैं अर्थात् जन्म मरण के प्रवाह में बहते रहते हैं। हिन्दी - विवेचन आगम में राग-द्वेष को कर्म का मूल बीज बताया है। प्रस्तुत सूत्र में राग-स्नेह-बन्धन के त्याग का उपदेश दिया गया है। क्योंकि जिस व्यक्ति के प्रति अनुराग होता है, मोह होता है तो उसके लिए मनुष्य अच्छे बुरे किसी भी कार्य को करने में संकोच नहीं करता । इसके लिए वह आरम्भ समारम्भ एवं विषय-वासना में सदा आसक्त रहता है और इससे पाप कर्म का संचय एवं प्रगाढ़ बन्ध करता है तथा परिणाम स्वरूप बार-बार गर्भ में जन्म ग्रहण करता है। 1 अतः आर्य! तू कर्म एवं जन्म-मरण के मूल कारण राग भाव या स्नेह बन्धन को तोड़ने का प्रयत्न कर और सावधान होकर संयम मार्ग पर गति कर । जो व्यक्ति बिना सोचे-विचारे, अविवेकपूर्वक काम करते हैं, उनके संसर्ग से क्या होता है, इस बात को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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