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________________ 442 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध का, उनकी मान्यताओं का बोध होना चाहिए। अन्यथा उसके उपदेश से लोगों में उनके प्रति अनादर का भाव उत्पन्न होगा और परिणाम स्वरूप वे उपदेशक को तिरस्कार एवं अपमान जन्य शब्दों से विभूषित कर सकते हैं। यदि कहीं अधिक उग्रवादी व्यक्ति हुए तो डंडे आदि का भी प्रयोग कर सकते हैं। अतः जो वक्ता देश, काल एवं श्रोताओं की मान्यताओं से परिचित होता है, वह परिषद् में कभी भी अपमान को प्राप्त नहीं होता। उपदेश का उद्देश्य लोगों को यथार्थ मार्ग दिखाना है। इसलिए उपदेशक को बड़ी सतर्कता से काम लेना पड़ता है। उसका काम इतना ही है कि वह उपदेश के द्वारा उनके मन में सत्य-अहिंसा आदि आत्म गुणों की ज्योति जगाकर उन्हें आत्मचिन्तन एवं सदाचार की ओर गतिशील कर दे और यह काम तभी हो सकेगा जब कि वह उनके विचारों से परिचित होगा और उन्हीं की भाषा में उन्हें समझने में प्रवीण होगा। उत्तराध्ययन सूत्र के पच्चीसवें अध्ययन में जयघोष-विजयघोष के प्रकरण में उपदेशक की शैली का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया गया है। दोनों व्यक्ति ब्राह्मण कुल में जन्मे थे, परन्तु एक श्रमण-निर्ग्रन्थ बन गया और दूसरा वैदिकं यज्ञ-याग में उलझ रहा है। एक समय मुनि जयघोष वाराणसी में पधारते हैं और भिक्षा के लिए धिजयघोष के यहां जा पहुंचते हैं। विजयघोष मुनि को यह कह कर भिक्षा देने से इनकार कर देता है कि मैं वेद में पारंगत एवं वैदिक धर्म का अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मण को ही भिक्षा दूंगा। मुनि इससे रुष्ट नहीं होते हैं, वे समभाव पूर्वक खड़े रहते हैं और उसे वैदिक विश्वासों के अनुसार धर्म के यथार्थ स्वरूप को समझाते हैं। वे उसे याज्ञिक भाषा में तत्त्व का उपदेश देते हैं। उसका परिणाम यह होता है कि विजयघोष के मन में श्रद्धा उत्पन्न होती है, वह चिन्तन की गहराई में उतरता है और वास्तविकता को समझकर साधना के यथार्थ पथ पर गतिशील हो उठता है, मुनि धर्म को स्वीकार कर लेता है और उत्कृष्ट साधना के द्वारा समस्त कर्मों को तोड़कर दोनो महामुनि मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वक्ता को बोलने से पहले श्रोता के विचारों का ज्ञान होना जरूरी है। उसे यह भी समझ लेना चाहिए कि यह किस मत का है और यदि कोई उससे प्रश्न पूछ रहा हो तो उस समय भी यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रश्न
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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