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________________ अध्यात्मसार:5 413 सकता है। इसीलिए ज्ञानीजन कहते हैं-तुम अपनी बुद्धि से लाख उपाय करो, पर बात नहीं बनती। लेकिन गुरु की शरण में जाते ही बात बन जाती है, क्योंकि गुरु की शरण में जाते ही गुरु मूल कारण को पकड़ कर उपाय बता देते हैं। इसलिए यह भी कहा गया है कि गुरु के प्रति अनन्य अटूट श्रद्धा रहे, जैसे आप चिकित्सक के पास गये तो वह जो भी दवा देते हैं, आप ले लेते हैं। आप यह सवाल नहीं करते कि यही दवा क्यों? उसी प्रकार गुरु जो भी उपाय बताएं, उसे श्रद्धा-पूर्वक करना। इस प्रकार दीर्घद्रष्टा का दूसरा अर्थ हुआ, कारण और परिणाम को जानने वाला, अर्थात् गुरु। __ऊँकार-एक ध्वनि है। यह तब प्रकट होती है जब व्यक्ति अपने शरीर के पार कुछ अनुभव करने लगता है, उसको हम 'अनाहत् नाद' कहते हैं। यह ध्वनि उस अनाहत नाद के रूप में प्रकट होती है तो जरूरी नहीं है कि वह ऊँ के रूप में ही हों, वह ध्वनि किसी भी रूप में हो सकती है। लेकिन वस्तुतः वह ओम् का ही एक रूप है। सुनने में सभी ध्वनियाँ अलग-अलग दिखाई देती हैं। लेकिन मूल में उन सभी ध्वनियों की गुणवत्ता.एक ही है। ध्वनि की उस विशेष गुणवत्ता का नाम ऊँ है। ____ इस प्रकार ऊँकार का अनुभव प्रत्येक साधक को हो सकता है। तत्कालीन आचार्यों ने देखा कि यह बाहर की ऊँकार की ध्वनि उस आन्तरिक ध्वनि हेतु भूमिका तैयार करती है। शरीर और मन को सात्त्विक बनाती है। अतः उन्होंने प्रत्येक मन्त्र के आदि में ऊँकार को जोड़ दिया है। ऊँकार भाषा का कोई अक्षर नहीं है। ऐसे तो प्रत्येक अक्षर अपने आप में एक ध्वनि है, लेकिन ऊँकार रूप ध्वनि साधक के लिए उपयोगी है, इससे साधना की भूमिका तैयार होती है। ॐकार ध्यान की विधि : ऊँकार का अर्थ जानने के पश्चात् ॐकार साधना की विधि क्या है? उसके लिए प्रथम गहरा श्वास लेना, पश्चात् दो अक्षर कहना ओ एवं म्; ओ कहते-कहते फिर म् कहना, ओ दो हिस्से में कहना एवं म् एक हिस्से में। यदि कोई व्यक्ति ऐसा कुछ भी न कर सके, तब गहरे श्वास के साथ इसका उच्चारण करे। कितनी बार उच्चारण करना? जिसकी जैसी आवश्यकता हो, फिर भी कम-से-कम 5 से 10 बार। इस प्रकार गहरा श्वास लेना और उच्चारण करना। उच्चारण करने के बाद शान्त रहकर ऊँकार का ध्यान कर सकते हैं।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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