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दृष्टि से प्रस्तुत आगम सर्वांगसुन्दर और सर्वजन उपयोगी सिद्ध हो। परम पूज्य आचार्यश्री जी ने प्रस्तुत आगम का बारीकी से अध्ययन कर पूर्व प्रकाशन में रह गई त्रुटियों को भी दूर किया है तथा अध्यात्मसार के रूप में विस्तृत आलेख लिखकर आचाराङ्ग में प्रवेश को अत्यन्त सरल और सुबोध भी बना दिया है।
अपने इस प्रथम भागीरथ प्रयास पर 'आत्म-ज्ञान शिव आगम प्रकाशन समिति' स्वयं को धन्य मानती है कि इसे प्रथम चरण में ही 'आचाराङ्ग' जैसे ज्ञान-गम्भीर और साध्वाचार के कोष स्वरूप आगम को प्रकाशित करने का सौभाग्य सम्प्राप्त हुआ है। हम आशा करते हैं कि निकट भविष्य में ही हमें पूज्य प्रथम पट्टधर आचार्य सम्राट
श्री आत्माराम जी महाराज द्वारा व्याख्यायित आगमों के प्रकाशन का सौभाग्य मिलता. रहेगा। इसी मंगल मनीषा के साथ
आत्म-ज्ञान-शिव आंगम प्रकाशन समिति
लुधियाना (पंजाब)