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________________ द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 5 399 भली-भांति जानता है और सांसारिक विषय-भोगों से सर्वथा निवृत्त होकर अनन्त सुख पा चुका है, वही दीर्घदर्शी है और ऐसा महापुरुष ही संसार में फंसे हुए व्यक्तियों को मुक्त बनने की राह बता सकता है। अस्तु तीन लोक के स्वरूप को स्पष्ट रूप से जानने वाला सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी होता है। उसके स्वरूप को 'ॐ' शब्द से भी अभिव्यक्त किया जाता है। ___ प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'अहोभाग' 'उड्ढभाग' और 'तिरियं' 'मध्य भागं' तीनों शब्दों के आदि के एक एक अक्षर को लेकर 'अउम्' तीनों का संयोग किया जाए, अर्थात् 'आद् गुणः सूत्र से 'अउ' में गुण किया जाए तो 'ओम् या ॐ' शब्द की सिद्धि हो जाएगी। इससे स्पष्ट होता है कि 'ॐ' शब्द तीन लोक के स्वरूप को भली-भांति जानने वाले सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी का परिबोधक है, योगदर्शन में इसी भाव का समर्थन किया गया है। __ जबकि प्रस्तुत सूत्र उक्त शब्दों को लेकर टीकाकार या वृत्तिकार आदि ने 'ॐ' शब्द की कल्पना नहीं की है। परन्तु मेरी समझ से प्रस्तुत सूत्र की रचना करते समय .. सूत्रकार के मन में यह कल्पना रही होगी। इसका आधार यह है कि उन्होंने 'अधो' "तिर्यक्' और 'ऊर्ध्व' के क्रम से तीनों लोक निर्देश न करके आकार आदि क्रम से निर्देश किया। इससे यह कल्पना की जा सकती है कि सूत्रकार को इन पदों से 'ॐ' को सिद्ध करना ही अभीष्ट रहा है। इसके अतिरिक्त जैनों का पंच परमेष्ठी मन्त्र भी 'ॐ' का प्रतीक माना गया है। 'अरिहन्त' 'अशरीरी' 'सिद्ध' और 'आयरिय' उक्त तीन पदों के 'अ+अ+अ' आदि अक्षरों का 'अकः सवर्णे दीर्घः' सूत्र से दीर्घ करने पर 'आ' बनता है। और 'आ' में उपाध्याय के 'उ' का संयोग करने पर 'आउ' 'आद्गुणः' सूत्र से 'ओ' बन जाता है और उसमें 'मुनि' पद के 'म्' का संयोग करने पर 'ओम्-ॐ' शब्द सिद्ध हो जाता है। इस प्रकार प्राचीन आचार्यों ने नमस्कार मन्त्र से 'ॐ' शब्द सिद्ध किया है। इससे स्पष्ट होता है कि 'ॐ' शब्द के पंच पदों से जिन गुणों का बोध होता है, वे समस्त गुण जिसमें पूंजीभूत हैं अर्थात् अनन्त ज्ञान, दर्शन, सुख एवं बल-वीर्य से सम्पन्न हो वह सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी आत्मा का संसूचक है। 1. तस्य वाचक प्रणवः पातंजल योगदर्शन, 1, 27
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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