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________________ अध्यात्मसार: 4 375 · इन उपायों को करता है, उतना ही वह असुरक्षित होता है। पहले तो उसे केवल अपनी ही सुरक्षा का ध्यान था, लेकिन अब धन की सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा। पहले तो उसे केवल अपनी ही रक्षा करनी थी, पर अब परिवार की रक्षा की भी चिन्ता हो गयी। इस प्रकार इन सबकी चिन्ता अपनी चिन्ता बन गयी। ____ इस प्रकार सुख और सुरक्षा के जितने भी उपाय करते हैं, वो उपाय उसके दुःख और असुरक्षा की वृद्धि का कारण बनते हैं। . सुरक्षा के लिए मकान बनाया पर अब मकान की रक्षा कौन करेगा? जितना ही व्यक्ति सुरक्षित होना चाहता है उतना ही असुरक्षा का भाव बढ़ता है। अतः बार-बार कहते हैं कि कोई तेरी शरण नहीं, कोई तुझे सुरक्षा नहीं दे सकता। रक्षा और शरण . तो केवल धर्म की है। धर्म क्या है? व्यावहारिक रूप से चार शरण, निश्चय में स्वभाव की शरण में आ जाना। यह सभी की समझ में नहीं आता और फिर अज्ञानवश वह स्वयं भी उलझता है और आसपास के लोगों को भी उलझाता है। उसी उलझन से आधि-व्याधि एवं उपाधि उत्पन्न होती है। मन के रोग, शरीर के रोग तथा परिग्रह के सम्बन्ध में चिन्ता, पीड़ा जागती है। जब यह ज्ञान हो जाए, यह समझ आ जाए कि कोई शरण देने वाला नहीं है। धर्म ही शरण है। साधना ही शरण है, तब समाधि की प्राप्ति . होती है। धन, पद-प्रतिष्ठा, घर-परिवार, समाज इत्यादि की शरण में गये, तब बाह्य शरण में गये, तब आधि-व्याधि एवं उपाधि मिलती है और यदि धर्म की शरण में गये, तब समाधि की प्राप्ति होती है। समाधि का अर्थ : आधि-व्याधि-उपाधि का नष्ट हो जाना नहीं है, अपितु इन सबके बीच में भी आप भीतर से समाधि में रहना। क्या इसको हम समता भी कह सकते हैं? यह समता ही है, लेकिन समाधि कहना उपयुक्त है। समाधि अर्थात् समाधान हो गया। अब कोई समस्या नहीं रही। सारी समस्याएं वस्तुतः परिस्थितियाँ हैं, परन्तु ऐसी परिस्थिति जो प्रतिकूल है और वह प्रतिकूल परिस्थिति जब हमें
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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