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________________ द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 3 345 पुरुष के लिए या मूढ़ व्यक्ति के लिए? इसका समाधान करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-उद्देसो पासगस्स नत्थि बाले पुण निहे कामसमणुन्ने असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवट अणुपरियट्ठइ, तिबेमि॥82॥ छाया-उद्देशः (उपदेशः) पश्यकस्य नास्ति, बालः पुनस्निहः कामसमनोज्ञः अशमितदुःखः दुःखी दुःखानामेव आवर्त्तमनुपरिवर्तते इति ब्रवीमि। ___ पदार्थ उद्देसो-उपदेश। पासगस्स-तत्वज्ञ-प्रबुद्ध पुरुषों के लिए। नत्थि-नहीं है। बाले पुण-फिर अज्ञानी व्यक्ति। निहे-राग युक्त। कामसमणुण्णे-काम भोगों का आसेवन करने वाला। असमिय दुक्खे-जिसके अभी तक दुःख उपशान्त नहीं हुए हैं, ऐसा। दुक्खी-दुःखी प्राणी। दुक्खाणमेव-दुःखों के। आवटें-चक्र में। अणुपरियट्टइ-परिभ्रमण करता रहता है। ____ मूलार्थ-तत्वज्ञ पुरुष के लिए उपदेश की आवयकता नहीं होती। अज्ञानी जीव राग-युक्त और विषय-भोगों में आसक्त होता है। अतः उसके दुःख उपशांत नहीं होते हैं। ऐसा दुःखी प्राणी दुःखों के चक्र में ही परिभ्रमण करता रहता है। हिन्दी-विवेचन प्रस्तुत सूत्र में तत्त्वज्ञ और अतत्त्वज्ञ या प्रबुद्ध और बाल दो प्रकृतियों का चित्रण किया गया है। इसमें बताया गया है कि जो व्यक्ति तत्त्वज्ञ है, प्रबुद्ध है, उसके लिए किसी प्रकार के उपदेश की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वह विषय-वासना से प्राप्त होने वाले कटु फल को भली-भांति जानता है, अतः वह उससे निवृत्त हो चुका है और उससे निर्लिप्त रहने के लिए अपनी साधना में सदा सजग रहता है। परिणामस्वरूप, वह पापकर्म का बन्ध नहीं करता है और न दुःख के प्रवाह में प्रवहमान ही होता है। इसके विपरीत, जो वासना के कटु फल को नहीं जानता है, ऐसा अज्ञानी व्यक्ति दुःखों का उपशमन करने के लिए विषय-भोगों का आसेवन करता है। जैसे गरमी की ऋतु में पसीने से भीगा बालक खेलते-कूदते घर में आता है और सारे वस्त्र उतार कर
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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