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________________ 336 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध प्रकार की है-1. इर्यासमिति, 2. भाषासमिति, 3. एषणासमिति, 4. आदाननिक्षेप समिति, और 5. उत्सर्ग समिति। 1. इर्यासमिति-विवेकपूर्वक गमनागमन करना। 2. भाषासमिति-विवेकपूर्वक संभाषण करना। 3. एषणासमिति-विवेकपूर्वक आहार आदि की गवेषणा करना। 4. आदा क्षेपसमिति-वस्त्र-पात्र आदि विवेक से रखना एवं उठाना। 5. उत्सर्गसमिति-मल-मूत्र आदि का विवेकपूर्वक उत्सर्ग करना। उक्त समिति से युक्त साधक प्रमाद एवं तज्जन्य अशुभ कर्मों के फल को भली-भांति देखकर, सदा उनसे बचने का प्रयत्न करता है। वह प्रत्येक क्रिया में सावधानी रखता है और सदा अप्रमत्त भाव से साधना-पथ पर गतिशील होने का प्रयत्न करता है। ___ अन्धत्व आदि के दो भेद किए हैं-1. द्रव्य और 2. भाव। आंखों में देखने की शक्ति का अभाव द्रव्य अन्धत्व है और ज्ञान चक्षु का अनावृत्तना नहीं भाव अन्धत्व है और उभय दोषों से आत्मा विभिन्न दुःखों एवं कष्टों का संवेदन करती है। द्रव्य अन्धत्व से वह पराधीनता के दुःख का अनुभव करती है और भाव अन्धत्व के कारण नरक-तिर्यंच आदि विभिन्न योनियों में अनेक प्रकार के कष्टों का संवेदन करती है। अन्धत्व की तरह अन्य दोषों को भी समझ लेना चाहिए। ... अन्धत्वादि दोषों की प्राप्ति प्रमाद से होती है। प्रमाद के कारण जीव संसार में परिभ्रमण करते हैं। अतः जो जीव प्रमाद के वश हिताहित में विवेक नहीं करते, अर्थात् अपने अज्ञान के कारण हित को अहित एवं अहित को हित समझते हैं, उनकी जो स्थिति होती है, उसका निर्देश करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-से अबुज्झमाणे अहओवहए जाईमरणं अणुपरियट्टमाणे, जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणगणं खित्तवत्थुग्मायमाणाणं, आरत्तं विरत्तं मणिकुण्डलं सह हिरण्णेण इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता, न इत्थ तवो वा दमो वा नियमो वा दिस्सइ, संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासमुवेइ॥80॥
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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