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________________ 332 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध इससे स्पष्ट होता है कि गोत्र का वाणी के साथ संबन्ध है। अभिमान की भाषा आध्यात्मिक दृष्टि से हेय मानी गई है। अतः कुल एवं जाति का अभिमान करना नीच गोत्र के बन्ध का कारण माना गया है। अतः नीच भाषा नीच कुल की प्रतीक है, तो उच्च भाषा श्रेष्ठ कुल की संसूचक है। ___ व्यवहार में भी हम देखते हैं कि भाषा जीवन को अभिव्यक्त करने का अच्छा साधन है। इसके आधार से हम मनुष्य-जीवन की गहराई नाप सकते हैं। भाषावैज्ञानिकों एवं मनोविज्ञान वेत्ताओं का यह अभिमत है कि भाषा का आचरण के साथ घनिष्ठ संबन्ध है। जीवन में जितना उच्च आचरण होगा, भाषा भी उसी के आधार पर उच्चता एवं श्रेष्ठता लिए हुए होगी और हम स्वयं देखते हैं कि प्रायः आचरणनिष्ठ श्रेष्ठ विचारकों की भाषा में जितनी गंभीरता रहती है, उतनी गंभीरता साधारण जीवन वाले व्यक्तियों की भाषा में नहीं पाई जाती। आचरणहीन व्यक्तियों की भाषा में नितान्त छिछलापन, अश्लीलता एवं निम्नस्तर देखा जाता है। इससे भी स्पष्ट होता है कि गोत्र की उच्चता एवं नीचता का आधार भाषा ही है और इसके कारण शुभ एवं अशुभ कर्म का बन्ध भी होता है। .. ___ इससे निष्कर्ष यह निकला कि गोत्र की उच्चता एवं नीचता जन्मगत नहीं, अपितु कर्मजन्य है। मानव अपने श्रेष्ठ आचरण से नीच गोत्र को उच्च गोत्र के रूप में परिवर्तित भी कर सकता है। नीच कुल में उत्पन्न होकर श्रेष्ठता की ओर बढ़ सकता है। जन्म और जातिगत उच्चता या नीचता से आत्मविकास के पथ में कोई रुकावट उत्पन्न नहीं होती। प्रस्तुत सूत्र में इसी बात को स्पष्ट किया गया है। ___ कर्मवाद के संबन्ध में जैन धर्म का अपना मौलिक चिन्तन है और आज के विद्वान एवं ऐतिहासिक विचारक इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि वैदिक परम्परा में मान्य कर्म विचारणा का मूल स्रोत (औरिजिनल सोस) जैन परम्परा में ही परिलक्षित होता है। वस्तुतः यह सत्य भी है कि कर्मवाद पर जितना गहरा चिन्तन एवं विशद विवेचन जैनागम ग्रन्थों में उपलब्ध होता है, उतना अन्य दर्शनों में कहीं नहीं मिलता। अस्तु, अष्ट कर्मों के साथ गोत्रकर्म पर जितनी विराट् एवं उदार दृष्टि से जैनों ने सोचा-विचारा है, उतना अन्य ने नहीं सोचा। इसलिए जैन एवं वैदिक-उभय संस्कृतियों के गोत्र संबन्धी मान्यता में रात-दिन का अंतर दिखाई देता है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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