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________________ 330 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध में कोई न्यूनता आई हो, ऐसा परिलक्षित नहीं होता। आगम में हरिकेशी मुनि का उदाहरण आता है। उसके अनुशीलन-परिशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अशुभ गोत्रकर्म के उदय से प्राप्त नीच गोत्र आत्मविकास में बाधक नहीं है; साधना के पथ पर गतिशील साधक के मार्ग को अवरुद्ध करने में समर्थ नहीं है। अतः साधक को प्राप्त उच्च या नीच गोत्र में हर्ष या शोक नहीं करना चाहिए। उच्च या नीच गोत्र शीशे पर पड़ने वाला प्रतिबिम्ब मात्र है। जब शीशे के सामने काले रंग का परदा डाल दिया जाता है, तो वह कालिमा युक्त प्रतीत होने लगता है और लाल, हरे, पीले आदि रंग का पदार्थ पड़ने पर वह भी तद्रूप प्रतीत होने लगता है और उक्त आवरण के अनावृत होते ही, वह अपने शुद्ध रूप में परिलक्षित होने लगता है। उसके ऊपर इन विभिन्न रंगों का कोई स्थायी प्रभाव नहीं होता। उनके सान्निध्य से वह अपने स्वरूप को नहीं खो देता है। इसी प्रकार आत्मा पर भी उच्च और नीच गोत्र का प्रभाव क्षणिक ही रहता है। इससे आत्म द्रव्य में कोई अंतर नहीं आता। इसके प्रभाव से आत्मा उच्च और नीच नहीं बनती। आत्मा के विकास और पतन या उच्चता और नीचता का आधार गोत्र नहीं, अपितु उसका आचरण है। अपने आचरण की श्रेष्ठता के बल पर नीच माने जाने वाले चांडाल आदि कुल में उत्पन्न व्यक्ति भी अपना आत्मविकास कर सकता है, संसारी आत्मा से ऊपर उठकर परमात्मा बन सकता है। अस्तु, गोत्र को लेकर उच्चता एवं नीचता पर विवाद करना एवं भेद की दीवारें खड़ी करना किसी भी दशा में उचित एवं न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। कर्मोदय से गोत्र की उच्चता एवं नीचता के झूले में आत्मा अनेक बार झूल आया है। प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'एगे' शब्द से सूत्रकार ने स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त कर दिया है कि किसी-किसी प्राणी को एक ही जन्म में उच्च और नीच गोत्र का अनुभव करना पड़ता है। इसलिए साधक को गोत्र के विषय में न तो अभिमान ही करना चाहिए और न हर्ष एवं शोक ही करना चाहिए। गोत्र शब्द का अर्थ ___संसार में श्रेष्ठता एवं हीनता का विभाजन प्रायः व्यक्ति या जाति के प्रभाव एवं अभ्युदय पर आधारित है। जिस व्यक्ति या जाति का प्रभाव अधिक होता है, लोगों
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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