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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध बल बढ़ेगा, मेरे प्रति मान-सम्मान एवं भक्ति रखने वालों की वृद्धि होगी तो मेरा बल बढ़ेगा। फिर इस हेतु से अनेक प्रपंच भी बढ़ेगा। यही अज्ञान है।
वास्तविकता यह है कि बाह्यबल बढ़ाने से उस पर आश्रित रहने से आत्मबल नहीं बढ़ता, अपितु क्षीण होता है। लेकिन आत्मबल का विकास करने से सारे बल अपने आप बढ़ते हैं।
साधु वही है, जो बाह्यबल का आश्रय छोड़कर आत्मबल पर ही आधारित रहता है। अतः आत्मबल का विकास करो, उसके लिए भगवान के मार्ग पर चलो, जितनी चित्त में स्थिरता और समाधि होगी, उतना ही आत्मबल का विकास होगा और उसी से समाज, श्रावक, इत्यादि बल आपके साथ चलेंगे। बिना आत्मबल के दूसरा कोई बल साथ नहीं देगा।