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________________ अध्यात्मसार: 2 319 दृढ़ता एवं भाव से करते हो। ऐसे अनेक मुनिराज हैं, जिनकी दीक्षा दीर्घकाल की, अर्धशतक की हो गयी, परन्तु वह तटस्थता नहीं आई और कई मुनिराज ऐसे भी हैं जो स्वल्पकाल में ही अपने गन्तव्य को साध लेते हैं। फिर भी किया हुआ कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता, आगे कहीं न कहीं वह मदद करता है। जैसे वासुदेव श्रीकृष्ण ने जीवनभर अरिहंत भगवान की सेवा की, धर्म-प्रभावना का उत्कृष्ट पुण्य बन्धन किया, लेकिन अन्त समय में तीव्र कषाय आ जाने पर नरक की गति हुई। - जो व्यक्ति साधना करके छोड़ दे, वह सुखी नहीं रह सकता, ऐसा कहना और मानना निश्चित रूप से सत्य नहीं है। हाँ, जब व्यक्ति बहुत लम्बे समय से लगा हुआ हो, साधना के समय में बहुत लम्बे समय तक स्थिर हुआ हो, तब उसके मन-वचन-काया इस प्रकार ढल जाते हैं कि वह संसार में अपने आपको योग्य रूप से ढाल नहीं पाता। फिर भी व्यक्ति अगर सरल है, सत्य के प्रति निष्ठावान है, प्रभु भक्ति करता है, तब वह गिर कर भी उठता है, उसको मार्ग मिलता है। इसलिए कहा है 'सत्य निष्ठा एवं सरलता' । मायावी व्यक्ति को कुछ नहीं मिलता। दीक्षार्थी के लिए क्या देखना? जिसको धर्म-साधना के पथ पर आगे बढ़ना है, उसके लिए यह देखना जरूरी है कि सम्यक् आलम्बन में उसकी कितनी स्थिरता है, इस योग्यतानुसार धर्मरत्न देना, साधना पथ हेतु चलने की सबसे बड़ी तैयारी है योगों की सम्यक् आलम्बन में स्थिरता। वह भी जब साधक की स्वयं की रुचि हो। केवल क्षणिक मोह में इस मार्ग में आ जाने पर बाद में पछतावा आता है। आगे जब कोई साधना हेतु तैयार हो, तब दो बातें देखनी और दो बातों की शिक्षा देनी-1. तत्त्वज्ञान, 2. योगों की सम्यक् आलम्बन में स्थिरता। . छोटी दीक्षा एवं बड़ी दीक्षा के बीच में छह माह का अन्तर अथवा एक वर्ष का भी अन्तर रख सकते हैं। उस नवदीक्षित मुनि को साथ में ही रखना जरूरी है। आहार वह अलग से भी ला सकता है अथवा आप भी लाकर दे सकते हैं। कई व्यक्ति दीक्षा लेने से पहले उच्च भावना से आते हैं और संयम लेने के बाद कई बार भावों में परिवर्तन आता है। इस अन्तराल के मध्य इसका अवसर मिलता है। नवदीक्षित साधु एवं गण के सभी सदस्य इस अन्तराल के पूर्ण होने के पहले यदि वह पुनः
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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