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________________ द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 2 315 हो सकती है, इसलिए राग-द्वेष एवं कषायों पर विजय प्राप्त करने तथा उक्त साधना में संलग्न रहने वाले व्यक्ति को अनगार कहते हैं। वह अनगार एक दिन कर्मबन्धनों से सर्वथा मुक्त हो जाता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति कषायों के प्रवाह में रहते हैं, वे उनके वश में होकर रात-दिन विषय-वासना में आसक्त रहते हैं और विभिन्न पाप कार्यों में प्रवृत्त होते हैं। अपनी शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए मांस-मत्स्य आदि अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करते हैं। अपनी जाति के व्यक्तियों को अनुकूल बनाने के लिए तथा अधिकारी वर्ग से कुछ काम कराने अथवा उससे अपना स्वार्थ साधने के लिए, उनकी इच्छा का पोषण करने के लिए विभिन्न प्राणियों की हिंसा करके उनके लिए भोजन-शराब आदि की व्यवस्था करते हैं। कई लोग मित्रता निभाने के लिए उसे सामिष भोजन कराते हैं। कुछ यह सोचकर कि संकट के समय इससे काम लिया जा सकता है, इसलिए उसे विभिन्न प्रकार के भोग-विलास एवं मांस-मदिरा युक्त खान-पान में सहयोग देते हैं तथा साथ में स्वयं भी.उसका आस्वादन कर लेते हैं। कुछ परलोक को सुधारने की अभिलाषा से या इस कामना से कि यज्ञ में बलिदान करने से मुझे स्वर्ग मिलेगा, यज्ञ वेदी पर अनेक मूक पशुओं का बलिदान करते हैं। कुछ देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मन्दिर-मस्जिद जैसे पवित्र देव-स्थानों को वधस्थल का रूप दे देते हैं। इस प्रकार अज्ञान के वश मनुष्य अनेक पापों में प्रवृत्त होता है। वह धर्म समझ कर यज्ञ आदि हिंसाजन्य कार्यों में प्रवृत्त होता है। परन्तु उसकी यह समझ उतनी ही भूल भरी है जितनी कि कीचड़ या खून से भरे हुए वस्त्र को कीचड़ या खून से साफ करने की सोचने वाले व्यक्ति की है। इन प्रवृत्तियों से पाप घटता नहीं, अपितु बढ़ता है और परिणामस्वरूप संसार-परिभ्रमण एवं दुःख-परंपरा में अभिवृद्धि ही होती है। . प्रस्तुत सूत्र में उपयुक्त “पावमुक्खु" में पाव + मुक्खु अर्थात् पाप और मोक्ष दो शब्दों का संयोग है। जो क्रिया प्राणी को पतन के गर्त में गिराती है या जिससे आत्मा कर्म के प्रगाढ़ बन्धन में आबद्ध होता है, उसे पाप कहते हैं और जिस साधना से आत्मा कर्म बन्धनों से सर्वथा मुक्त होती है, उसका नाम मोक्ष है। 'दण्ड समायाणं'-'दंड समादानं' का अर्थ है-प्राणियों की हिंसा में प्रवृत्त
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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