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________________ 28 एक-दूसरे को लेना-देना भी कल्पता है और साधु-साध्वी फल का गूदा ग्रहण कर ले, परन्तु गुठली को ग्रहण न करे। ___पहला उदाहरण पूर्णतः निषेध का है। साधु को कच्चा तालफल लेना नहीं कल्पता, यह उत्सर्ग मार्ग है। परन्तु वह फल पक्व हो तो साधु उसे ग्रहण कर सकता है, यह अपवाद मार्ग है। शेष दो भेद क्रमशः उत्सर्ग-अपवाद और अपवाद-उत्सर्ग के हैं और वे इस विधि और निषेध को साथ लेकर ही बनाए गए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि निवृत्ति उत्सर्ग मार्ग और प्रवृत्ति अपवाद मार्ग है। परन्तु हैं दोनों ही मार्ग। साधक सदा-सर्वदा उत्सर्ग मार्ग पर गति नहीं कर सकता है। जैसे पटना या कोलकाता आदि शहरों को जाने वाला पथिक निरन्तर दौड़ता हुआ राह को तय नहीं कर सकता है। इतने लम्बे मार्ग को पार करने के लिए वह रास्ते में बैठता भी है, शयन भी करता है, आहार-पानी भी करता है, मल-मूत्र का भी त्याग करता है, तब वह अपने निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचता है। इसी तरह साधक भी साधना-पथ पर चलते-चलते विघ्न-बाधाएं या रोग आदि के उपस्थित होने पर अपवाद मार्ग का सहारा न ले तो वह शुद्ध संयम का पूर्णरूपेण परिपालन नहीं कर सकता। अतः महापुरुषों ने उत्सर्ग और अपवाद दोनों को मार्ग कहा है और अपने-अपने स्थान पर दोनों को श्रेयस्कर एवं समान बल वाला कहा है। परन्तु पर-स्थान में दोनों अश्रेयस्कर हैं। स्व-स्थान और पर-स्थान साधक की अपेक्षा से हैं। समर्थ साधक के लिए उत्सर्ग स्व-स्थान एवं अपवाद पर-स्थान है और असमर्थ साधक के लिए रोगादि अवस्था में अपवाद स्व-स्थान और उत्सर्ग पर-स्थान है। जिस समय साधक स्वस्थ है, परीषहों को सहन करने में सक्षम है, उस समय यदि वह अपवाद मार्ग का अवलम्बन लेता है, तो अपवाद मार्ग उसके लिए परस्थान है, अश्रेयस्कर है। इसी तरह अवस्था एवं विकट परिस्थिति में साधक परीषहों को सहने में सक्षम नहीं है, उसका मन 1. (1) नो कप्पइ निग्गंथाणं-निग्गंथीणं वा आमे तालपलंबे अभिन्ने पडिगहितए। (2) कप्पइ निग्गंथाणं-निग्गंथीणं पक्के तालपलंबे भिन्नेऽभिन्ने वा पडिगहितए। (3) नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा अन्नमनन्नस्स मोयं आदित्तए वा आयमित्तए वा अन्नत्था गाढ़ेहिं रोगायंकेहिं। (4) चम्ममंसं च दलाहि मा अट्ठियासि। -बृहत्कल्प सूत्र, 1, 1, 1, 3, 5, 47-48 आचारांग सूत्र
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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