________________
द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 1
अधीन रहता है? यदि ऐसा नहीं है, तो वृद्धावस्था में ज्ञान की बोधकता शिथिल क्यों हो जाती है ?
273
उक्त प्रश्न का समाधान यह है कि आत्मा ज्ञान स्वरूप है, उसका - संसारी आत्मा के ज्ञान का अवस्था के साथ नहीं, कर्म के साथ संबन्ध है । हम देखते हैं कि कुछ बालकों में ज्ञान का इतना विकास होता है कि युवक एवं प्रौढ़ व्यक्ति भी उनकी समानता नहीं कर सकते। कुछ वृद्धों में जीवन के अंतिम क्षण तक ज्ञान की ज्योति जगमगाती रहती है और कुछ युवक एवं प्रौढ़ व्यक्तियों में भी ज्ञान का विकास बहुत ही स्वल्प दिखाई देता है । इससे स्पष्ट है कि ज्ञान का विकास अवस्था के अधीन नहीं, ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम पर आधारित है। चाहे बाल्यकाल हो, युवाकाल हो या वृद्धावस्था का अन्तिम चरण हो, जितना ज्ञानावरणीय कर्म का अधिक या कम क्षयोपशम होगा, उसी के अनुरूप आत्मा में ज्ञान की ज्योति का परिदर्शन होगा । अस्तु, ज्ञान की स्वल्पता या विशेषता में जो विचित्रता देखी जाती है, वह ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम की न्यूनता एवं अधिकता के आधार पर ही स्थित है ।
दूसरा प्रश्न इन्द्रियों से संबद्ध है । इसमें इतना अवश्य समझ लेना चाहिए कि ज्ञान आत्मा का गुण है, इन्द्रियों का नहीं । वह सदा आत्मा के साथ रहता है । इन्द्रियों के अभाव में भी ज्ञान का अस्तित्व बना रहता है । अतः ज्ञान का इन्द्रियों के साथ सीधा संबन्ध नहीं है। फिर भी इन्द्रियों के द्वारा ज्ञान होता है, इसका कारण यह है कि ये छद्मस्थ अवस्था में ज्ञान के साधन हैं, निमित्त हैं। क्योंकि छद्मस्थ अवस्था में आत्मा पर ज्ञानावरणीय कर्म का इतना आवरण छाया रहता है कि वह बिना किसी साधन के किसी पदार्थ का बोध नहीं कर सकती । वह मति और श्रुतज्ञान के द्वारा पदार्थों का ज्ञान करती है और उक्त दोनों ज्ञान इन्द्रिय और मन की अपेक्षा रखते हैं । इसी कारण इन्हें आगम में परोक्ष ज्ञान कहा गया है, क्योंकि ये इन्द्रियों के आधार पर आधारित हैं। अतः छद्मस्थ अवस्था में जितना ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, उतना ही आत्मा में ज्ञान का विकास होता है । जैसे साधारणतः मति और श्रुत ज्ञान में इन्द्रिय-सहयोग की अपेक्षा रहती है, परन्तु उसकी विशेष अवस्था जाति-स्मृति ज्ञान में अपने निरन्तर सन्नी पंचेन्द्रिय के किए हुए भवों को देखने-जानने में इन्द्रियों की अपेक्षा नहीं रहती और अवधि ज्ञान एवं मनः पर्यव ज्ञान युक्त व्यक्ति इन्द्रियों की