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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
अन्यथा संभव नहीं है। संसार में सबसे कठिन कार्य यदि कोई है तो वह है चित्त का निरोध। लेकिन सद्गुरु की शरण में यह सहज हो सकता है। यही सद्गुरु की शरण का महत्त्व है।
गुरु की क्या आवश्यकता है? गुरु उपाय बताता है कि किस समय क्या आवश्यकता है? ध्यान आवश्यक है या प्रार्थना या भक्ति या जाप या तप या कायोत्सर्ग इत्यादि। साधना भी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अनुसार बदलती है। जैसे औषध तो वही है, परन्तु भिन्न-भिन्न रूप से देनी होती है। मूल बात वही है कि कैसे आत्मगत भावों में रमण हो सके।
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