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________________ 246 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति, तं परिण्णाय मेहावी व सयं वाउसत्थं समारंभेज्जा णेवऽण्णेहिं वाउसत्थं समारंभावेज्जा णेवऽण्णे वाउसत्थं समारम्भंते समणुजाणेज्जा, जस्सेते वाउसत्थं समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि॥60॥ __ छाया-सः (अहं) ब्रवीमि, सन्ति सम्पातिमाः प्राणिनः आहृत्य संपतन्ति च स्पर्शं च खलु स्पृष्टा एके संघातमापद्यन्ते, ये तत्र संघातमापद्यन्ते ते तत्र पर्यापद्यन्ते, ये तत्र पर्यापद्यन्ते ते तत्र अपद्रावन्ति, अत्र शस्त्रं समारभमाणस्य इत्येते आरंभा अपरिज्ञाता भवन्ति, अत्र शस्त्रमसमारभमाणस्य इत्येते आरंभा परिज्ञाता भवन्ति, तत् परिज्ञाय मेधावी नैव स्वयं वायुशस्त्रं समारंभेत, नैवान्यैश्च वायु शस्त्रं समारम्भयेत् नैवान्यान् वायुशस्त्रं समारभमाणान् समनुजानीयात् यस्येते वायु शस्त्र समारंभाः परिज्ञाता भवन्ति, सः खलु मुनिः परिज्ञातकर्मा इति ब्रवीमि। पदार्थ-से-वह। बेमि-मैं कहता हूं। संपाइमा-संपातिम-उड़ने वाले। पाणाप्राणी जो। संति-हैं वे। आहच्च-कदाचित्। संपयंति-वायुकाय के चक्र में आ पड़ते हैं। य-फिर वे। फरिसं-वायुकाय के स्पर्श को। पुट्ठा-स्पर्शित होते हैं। च, खलु-दोनों समुच्चयार्थक हैं। एगे-कोई एक जीव। संघायमावज्जति-शरीर-संकोच को प्राप्त हो जाते हैं। जे-जो। तत्थ-वहां पर। संघायमावज्जति-शरीर-संकोच को प्राप्त होते हैं। ते-वे जीव। तत्थ-वहां पर। परियावज्जति-मूर्छा को प्राप्त हो जाते हैं। जे-जो जीव। तत्थ-वहां पर। परियावज्जति-मूर्छा को प्राप्त करते हैं। ते-वे जीव। ततयं-वहां पर। उद्दायंति-मृत्यु को प्राप्त करते हैं-मर जाते है। एत्थ-इस वायुकाय में। सत्थं-शस्त्र का। समारंभमाणस्स-समारंभ करने वाले को। इच्चेते-ये सब। आरंभा-आरंभ। अपरिण्णाया भवंति- अपरिज्ञात-ज्ञात और प्रत्याख्यात नहीं होते हैं। एत्थ-इस वायुकाय में। सत्थं-शस्त्र का। असमारंभमाणस्स-समारम्भ न करने वाले के। इच्चेते-ये सब। आरंभा-आरंभ । परिण्णाया भवंति-परिज्ञात-ज्ञात और प्रत्याख्यात होते हैं। तं-उस आरंभ के। परिण्णाय-द्विविध
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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