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________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक 7 245 अपेक्षा से वायु को व्यवस्थित करने से मन में एकाग्रता आती है। इससे चिन्तन में गहराई एवं सूक्ष्मता आती है। फलस्वरूप ज्ञान का विकास होता है और आत्मा धीरे-धीरे विकास की सीढ़ियों को पार करते-करते एक दिन शरीर, वचन और मन योग के निरोध के साथ-साथ प्राणवायु का भी सर्वथा निरोध करके सिद्धत्व को प्राप्त कर लेता है। चौदहवें गुणस्थान में पहुंच कर आत्मा त्रियोग के साथ ‘आण-पाण निरोहिइत्ता' अर्थात् श्वासोच्छ्वास का भी सर्वथा निरोध कर लेता है। श्वासोच्छ्वास का संबन्ध योग के साथ है, क्योंकि शरीर में ही सांस का आवागमन होता है और वाणी एवं मन का भी शरीर के साथ ही संबन्ध है। त्रियोग में शरीर सबसे स्थूल है, वाणी उससे सूक्ष्म है, और मन सबसे सूक्ष्म है। इसी कारण चौदहवें गुणस्थान को स्पर्श करते ही आत्मा सर्वप्रथम मन का निरोध करता है, उसके बाद वाणी का और फिर शरीर का निरोध करके समस्त कर्म-बन्धनों एवं कर्म-जन्य साधनों से मुक्त होकर शुद्ध आत्म-स्वरूप को प्रकट करता है। अस्तु चौदहवें गुणस्थान को स्पर्श करके सिद्धत्व को पाना ही साधना का एकमात्र उद्देश्य है और इसके लिए वायु का व्यवस्थित रूप से निरोध करना लक्ष्य तक पहुंचने में सहायक होता है। इसकी साधना से साधक को अनेक लब्धियाँ प्राप्त होती हैं। स्वरोदय शास्त्र का आविष्कार इसी वायु-तत्त्व के आधार पर हुआ है। परन्तु इन सब शक्तियों का उपयोग आध्यात्मिक साधना को विकसित करने के लिए करना चाहिए, न कि ऐहिक सुखों के लिए। क्योंकि भौतिक सुख क्षणिक हैं और उनके पीछे दुःखों का अनन्त सागर ठाठे मार रहा है। अतः साधक को भौतिक सुखों की मृगतृष्णा को त्याग कर अपनी शक्ति को आत्मा को कर्मों से सर्वथा निरावरण करने में ही लगाना चाहिए। प्रस्तुत सूत्र का यही तात्पर्य है। . अब सूत्रकार इस बात को बताते हैं कि जो व्यक्ति त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा में आसक्त रहता है, उसे उसका कटु फल भोगना पड़ता है। अतः मुनि को हिंसा से सर्वथा दूर रहना चाहिए। इसी बात को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-से बेमि संति संपाइमा पाणा आहच्च संपयंति य फरिसं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावति, जे तत्थ संघाय मावज्जति, ते तत्थ परियावज्जति, जे तत्थ परियावज्जति ते तत्थ उद्दायंति, एत्थ
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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