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________________ अध्यात्मसार :6 मूलम्-मंदस्सावियाणओ॥1/6/50॥ मूलार्थ-तत्त्व से अनभिज्ञ जीव ही संसार में परिभ्रमण करता है। संसार-परिभ्रमण का मूल क्या है? जो मंद है, अविज्ञात है, वह इस संसार में परिभ्रमण करता है। मंद किसे कहते हैं? व्यवहार में जो बुद्धिमान नहीं है, उसे मंद कहते हैं, परन्तु यहाँ पर जो जीव-अजीव के बोध से तत्त्वबोध से रहित, आत्मबोध से रहित है वह मंद है। तत्त्व-तत् अर्थात् वह तत्त्व अर्थात् मूल । दुनिया की दृष्टि में वह बहुत बुद्धिमान है, बड़ा विद्वान है, प्रखर पंडित भी हो सकता है, लेकिन आत्म-दृष्टि की अपेक्षा वह मन्द है, क्योंकि तत्त्व बोध से रहित है। हो सकता है वह दुनिया की अनेक विद्याओं को जानने वाला हो, मंत्र-तंत्र का ज्ञाता हो, ऋद्धि सिद्धिधारी हो, फिर भी आत्मबोध के अभाव में वह मंद ही कहलाएगा। - अविज्ञात किसे कहते हैं? ऐसा जो मंद है, जो अविज्ञ होगा, जब तत्त्वबोध होता है तब वह विज्ञ-सुज्ञ बन जाता है। . सुज्ञ-सुन्दर सम्यक् ज्ञान से युक्त। ...' विज्ञ-विशेष ज्ञान से युक्त-जो ज्ञान सभी के पास में नहीं है। सम्यक् ज्ञान को विशेष ज्ञान कहा है, क्योंकि वह विशेष फल को देने वाला है। जो हरेक को नहीं मिलता वह विशेष फल है। निर्वाण-इस प्रकार जो ज्ञान हरेक के पास नहीं है। जो ज्ञान निर्वाण रूपी विशेष फल को देने वाला है उस ज्ञान से युक्त व्यक्ति को विज्ञ कहते हैं। - यह विज्ञता और अविज्ञता भी तत्त्वबोध पर आधारित है। ऐसे तो ज्ञान ज्ञान ही है, लेकिन दर्शन की अपेक्षा से वही ज्ञान अज्ञान कहलाता है। दर्शन सम्यक् होने पर ज्ञान, अन्यथा अज्ञान। इस प्रकार जो आत्मबोध से रहित मंद है, वह अविज्ञात है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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