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________________ श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध ऊपर का भाग दिव्य वस्त्र से प्रच्छन्न रहता है, उस प्रच्छन्न भाग में देवों का जन्म होता है और कुम्भ वज्रमय भीत का गवाक्ष नारकों का उपपात क्षेत्र है । इन उभय स्थानों में स्थित वैक्रिय पुद्गलों को देव और नारक ग्रहण करते हैं । 218 इन उत्पत्ति स्थानों में कौन जीव जन्म लेता है, इसी बात को बताते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम् - मंदस्सावियाणओ ॥50॥ छाया - मंदस्याविजानतः । पदार्थ - मंदस्स - मंद व्यक्ति का । अवियाणओ - जो तत्त्व से अनभिज्ञ है, उसका संसार में भ्रमण होता है । मूलार्थ - -तत्त्व से अनभिज्ञ जीव ही संसार में परिभ्रमण करता 1 हिन्दी - विवेचन उक्त उत्पत्ति स्थानों में कौन व्यक्ति जन्म लेता है, इसका समाधान करते हुए सूत्रकार ने ‘मंदस्स' शब्द प्रयोग किया है । अर्थात् जो मंद बुद्धिवाला है, वह संसार में परिभ्रमण करता है । भेद के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए 'अवियाणओ' शब्द का प्रयोग किया है। अर्थात् मंद बुद्धिवाला वह है, जो जीव- अजीव आदि तत्त्व ज्ञान से अनभिज्ञ है। इन्हें आगमिक भाषा में बाल भी कहते हैं । क्योंकि प्रायः बालक का ज्ञान अधिक विकसित न होने से वह अपने जीवन की समस्याओं को हल करने में तथा अपना हिताहित सोचने में असमर्थ रहता है । इसी प्रकार अज्ञानी व्यक्ति भी तत्त्वज्ञान से रहित होने के कारण अपनी आत्मा का हिताहित नहीं समझ पाता और इसी कारण विषय-वासना में आसक्त हो कर संसार बढ़ाता है। इसी अपेक्षा से अज्ञानी व्यक्ति को बाल कहा गया है। बालक के जीवन में व्यावहारिक ज्ञान की कमी है, तो इसमें आध्यात्मिक ज्ञान का विकास नहीं हो पाया है। इससे यह स्पष्ट हो है जो व्यक्ति सम्यग् ज्ञान रहित है, वही संसार में परिभ्रमण करता है । कुछ व्यक्तियों का कथन है कि हम देखते हैं कि जो व्यक्ति तत्त्व ज्ञान से युक्त हैं, वे भी उक्त उत्पत्ति स्थानों में किसी एक उत्पत्ति स्थान में जन्म ग्रहण करते हैं ।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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