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अध्यात्मसार:5
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इस प्रकार तीन में से किसी प्रकार का व्यक्ति (साधु) पुनः-पुनः गुणों का सेवन कर वक्र समाचारी हो जाएगा। साधु समाचारी का पालन नहीं करेगा, करेगा तो भी माया, कपट, झूठ के साथ वक्रतापूर्वक करेगा। सबके समक्ष कुछ करेगा, अन्दर कुछ करेगा। सबके सामने साधु है, इस लज्जावश नहीं करेगा परन्तु भीतर करेगा। यह सूत्र भी तीन प्रकार से हैं। ___ 1. पहले प्रकार के साधु जो समाचारी का लज्जा के वश सबके समक्ष पालन करते हैं, लेकिन जहाँ पर लज्जा का कोई निमित्त न हो, ऐसे भीतर से समाचारी का पालन नहीं करते। ।
.. 2. दूसरे ऐसे साधु जो कि निर्लज्ज हैं, न तो अकेले में समाचारी का पालन करते हैं, न बाहर ही सबके समक्ष समाचारी का पालन करते हैं। सभी के समक्ष निर्लज्ज बनकर कुछ भी करेंगे।
3. ऐसे साधु भी समाचारी का पालन नहीं करते, परन्तु स्वार्थ-वश, अपने अहंकार को बनाये रखने के लिए, स्वयं को उत्कृष्ट प्रदर्शित करने के लिए कि हम सच्चे साधु हैं, बाहर से समाचारी का पालन करते हैं। यह बहुत बड़ी माया है। इससे मोहनीय कर्म का प्रगाढ़ बन्ध होता है।
इस प्रकार मनोगुप्ति की साधना के अभाव में अनेक साधु-जन पुनः-पुनः विषयों का सेवन करते हैं निर्लज्ज बनकर या फिर लज्जा सहित बाहर से जिसे हम व्यवहार कहते हैं ऐसा आचरण करते हैं। तीसरे अति मायावी, ऐसे व्यक्ति प्रमादी हो जाते हैं, संयम एवं यतना से अप्रमत्तता, वैसे ही पुनः-पुनः गुणों के सेवन से प्रमाद और इस प्रमाद के वश वे अनगार से गृहस्थ बन जाते हैं, सुख एवं सुविधाओं के दास बन जाते हैं। फिर जहाँ पर उन्हें सुख-सुविधा एवं विषयों का विस्तार मिलता है, उसी ओर उनके मन-वचन-काया गति करते हैं। यदि काया कभी जा भी न पाये तो भी मन तो चला ही जाता है।
'जितना-जितना, मन का, विषयों का, इन्द्रियों का दासत्व उतना-उतना गृहस्थ, जितना-जितना स्वामित्व उतना-उतना साधुत्व।'
इस प्रकार कैसे व्यक्ति की पडिवाई होती है यह इन तीन सूत्रों में बताया गया