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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
हिन्दी-विवेचन
यह हम देख चुके है कि अग्नि सबसे तीक्ष्ण शस्त्र है। इसकी प्रज्वलित ज्वाला की लपेट में आने वाला सजीव या निर्जीव कोई भी पदार्थ अपने रूप में सुरक्षित नहीं रह सकता। वह पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों का विनाश करने के साथ उनके आश्रय में निवसित त्रस जीवों को भी जलाकर भस्म कर देती है। उसकी लपेट में आने वाले जीवों के कुछ नाम गिनाते हुए प्रस्तुत सूत्र में कहा गया है कि पृथ्वी, तृण, पत्ते, काष्ठ, गोबर एवं कूड़े-करकट में स्थित जीवों के तथा आकाश में उड़ने वाले जीव-जन्तु कभी आग में गिर पड़ें तो वह उनके प्राणों का नाश कर देती है।
यह तो स्पष्ट है कि आग पृथ्वी पर प्रज्वलित होती है और पृथ्वी के आश्रय में अनेक जीव निवसित हैं। कृमि, पिपीलिका, कीड़े-मकोड़े, बिच्छू, सर्प, मेंढक तथा वृक्ष, लता, बेल आदि के जीव पृथ्वी के आधार पर ही स्थित हैं। अतः जब आग लगती है तो इनमें से अनेक जीवों की हिंसा होना संभव है। ___आग को प्रज्वलित करने में तृण, काष्ठ और गोबर का प्रयोग किया जाता है तथा घर के या गलियों के कूड़े-कर्कट को एकत्रित करके उसमें आग लगा दी जाती है। उसे दूर जंगल में ले जाकर फेंकने के बजाय उसमें आग लगा कर समय एवं श्रम को बचा लिया जाता है। परन्तु इससे अनेक जीवों की हिंसा हो जाती है। क्योंकि तृण, काष्ठ एवं गोबर के आश्रय में पतंगे, भ्रमर, लट, घुण, कुंथुवे आदि अनेक जीव-जन्तु रहते हैं और कूड़े-कर्कट में तो विभिन्न त्रस जीव रहते हैं-कीड़े-मकोड़े, पिपीलिका आदि का पाया जाना तो साधारण-सी बात है। अस्तु, इनको जलाने में अनेक जीवों की हिंसा हो जाती है।
इसके अतिरिक्त जब आग जलती है, तो आकाश में उड़ने वाले मक्खी, मच्छर, भ्रमर एवं अन्य पक्षी गण कभी-कभी उसमें आ गिरते हैं और उसका जाज्वल्यमान उष्ण संस्पर्श पाकर उनका शरीर सिकुड़ जाता है, वे तुरन्त मूच्छित होकर प्राण त्याग देते हैं।
इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अग्नि का समारम्भ सबसे भयानक है। इसमें छः काय के जीवों की हिंसा होती है। इसलिए बुद्धिमान पुरुषं को उसका