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________________ अध्यात्मसार : 3 161 का लाभ होता है, (3) अल्प साधना में अधिक प्रगति होती है, (4) आहार , करते समय अनासक्त भाव एवं शुभ भाव के लिए आहार करने से पूर्वभाव पूर्वक मन को लगाते हुए, नमस्कार सूत्र को पढ़ना, इससे मन-शुद्धि एवं आहार-शुद्धि होती है। आहार संविभाग-आहार बाँटने वाले को इस प्रकार आहार बाँटना जैसे माँ बच्चों को आहार बाँटती है। किसके लिए क्या आवश्यक है, सूक्ष्म मेधापूर्वक यह जानते एवं देखते हुए आहार बांटना। आहार मुख्य बात है-परन्तु वस्त्र इत्यादि के साथ भी संस्कारों का आगमन हो सकता है। इसीलिए बताया कि जिनसे ग्रहण करें, उन्हें कुछ न कुछ योग्यतानुसार प्रत्याख्यान अवश्य देना, जिससे उनसे लिए हुए दान में अशुद्धि हो तो वह दूर हो जाती है। यह सब साधना की बाह्य, स्थूल तथा छोटी-छोटी बातें हैं। लेकिन साथ में आभ्यंतर साधना की बहुत आवश्यकता है। ये बातें छोटी होते हुए भी महत्त्वपूर्ण हैं। इनका महत्त्व, पूर्णतः तो आभ्यम्तर साधना के साथ में ही है। जो इस प्रकार के बाह्याचार का पालन नहीं करते, वे भी साधना तो कर सकते हैं, लेकिन उन्हें बहुत अड़चनें आती हैं। समय अधिक लगता है। जो भी संस्कार का दोषपूर्वक आगमन हो गया है, उन्हें भी पार करना पड़ता है। बिना बाह्याचार के जो साधना 12 वर्ष में हो सकती है, वह आचार के साथ आठ वर्ष में हो सकती है। ऐसे देखा जाए तो गोचरी भी अपने आपमें एक बहुत बड़ी साधना है, लेकिन साथ में आभ्यन्तर साधना भी आवश्यक है। कार्य कैसे करना-जो भी कार्य करो पूर्ण भावपूर्वक करो तब बहुत लाभ देगा। संयम के किसी भी कार्य को छोटा मत समझो। कौन जाने किस निमित्त से आत्मबोध हो जाए। किसी को रस्सी पर नाचते हुए, किसी को आहार करते हुए, किसी को श्मशान में। अतः जो भी करो, बहुत भाव से कार्य करने से अत्यधिक निर्जरा होती है। लेकिन साथ में ध्यान भी अत्यन्त जरूरी है, उसको नहीं छोड़ना। विहार में भी ध्यान को प्रमुखता देना; क्योंकि ध्यान की धारा एक बार टूट गयी तो पुनः जोड़ना मुश्किल है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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