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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
हुए संस्कार असर नहीं करते।
किस प्रकार के संस्कार? 1. वह आहार किस प्रकार की आजीविका के द्वारा खरीदा हुआ है? जिस प्रकार का धन होगा नीति या अनीति का, उसी प्रकार के संस्कार साथ में आएंगे, 2. वह आहार किसने एवं किस प्रकार की भावना से बनाया है, 3. बनाने वाले ने किस-किस प्रकार के आरम्भ-समारंभ द्वारा बनाया है, 4. इसके साथ कुछ अन्य संस्कार भी आहार के साथ आ सकते हैं। अतः अपने निमित्त से बनाया हुआ आहार ग्रहण न करना। ___कृतकारित-यदि आहार साधु के निमित्त से खरीदा हुआ है, तब भी संस्कार दोष लगता है।
__गोचरी लाने के बाद आहार किस भाव से करना यह भी ध्यान देने योग्य बात है-जिस भावना से आहार किया जाएगा, तदनुसार उसका परिणमन होगा। अतः अनासक्त भाव से आहार करना।
आहार के साथ आए हुए संस्कार हमारे मन के विचारों के माध्यम से साधना में बाधा उत्पन्न करते हैं।
उपाय
1. आहार कैसा है-सात्त्विक, राजसिक या तामसिक? 2. किस प्रकार की भावना से एवं किस प्रकार की आजीविका से आया है? 3. गोचरी लाने वाला किस प्रकार की भावना से गोचरी लाया है? .. 4. किस प्रकार की भावना से आहार किया जाता है? 1. सात्त्विक आहार करना। 2. नियमपूर्वक आहार करना जिससे संस्कार दोष से बचा जाए। 3. गोचरी लाने वाला मन में भाव रखें कि 'जीवो मंगलम्' सभी जीव मंगलकारी हैं और सभी की संयम साधना में वृद्धि हो उसमें मेरा लाया हुआ आहार निमित्त बने। इस प्रकार जैसे प्रभु की भक्ति करते हैं वैसे ही गोचरी लाने वाला भक्ति-भाव पूर्वक एवं विनम्रतापूर्वक आहार लाये। इस प्रकार से की गई सेवा से-(1) स्वास्थ्य लाभ होता है, (2) पुण्य-बंधन तथा संवर-निर्जरा