________________
अध्यात्मसार : 3
149
मूलम्-पणया वीरा महावीहिं॥1/3/21
मूलार्थ-यह संयम-मार्ग परिषह-उपसर्ग और कषायादि पर विजय पाने वाले धीर-महावीर पुरुषों द्वारा आसेवित है। ___जब शिष्य के भीतर साधना के प्रति संशय का जन्म होता है तब इस सूत्र में सद्गुरु शिष्य से कहते हैं कि देखो भाई अनेक वीर पुरुष इस प्रधान राजमार्ग पर पुरुषार्थ और पराक्रम कर चुके हैं। लेकिन यह कहने से पहले स्वयं उस पथ पर चलते हुए तत्त्वं का अनुभव कर लेना आवश्यक है। उसके बाद ही आप वस्तुतः किसी को स्थिर कर सकते हैं।
- स्थिर वही कर सकता है जो स्थविर हो गया है। स्थविर अर्थात जो अपने में स्थिर हो गया, जिसने अपने भीतर रहे हुए शाश्वत स्थिर धर्म, स्वभाव का अनुभव कर लिया।
- स्थविर 3 प्रकार के-1. वय स्थविर, 2. दीक्षा स्थविर और 3. ज्ञान स्थविर । इन तीनों में उत्तम ज्ञान स्थविर है। .
कषाय को शान्त करने का सरल उपाय
जब भी मन में कषाय भाव आ जाए, तब सर्वोत्तम है मौन हो जाना। जितनी साधना बढ़ेगी, उतनी जागरूकता बढ़ेगी। सभी वीर इसी राजमार्ग पर चलते हैं; क्योंकि अन्य मार्ग लम्बे और अड़चनों से युक्त हैं। यह जिन-शासन का मार्ग अन्य मार्गों की अपेक्षा, अत्यन्त ही सरल और शीघ्रगामी है। अतः सभी प्रज्ञावान वीर पुरुष इसी मार्ग पर आगे बढ़ते हैं।
- 'सोऽहं-जिसने जीव के अस्तित्व को जान लिया वह आत्मवादी हो गया। जिस समय हम जीव के अस्तित्व को जान लेते हैं, उस समय हम अजीव के अस्तित्व को भी जान लेते हैं। और यही राजमार्ग है। दूसरे भी अनेक मार्ग हैं। यह सारा लोकसमस्त तत्त्व जीव और अजीव में समाविष्ट हो जाता है। अन्य सभी जीव और के सम्बन्ध से निष्पन्न होते हैं। जीव और अजीव के बीच में कर्म का सम्बन्ध है अथवा ऐसा कहो जीव और अजीव के बीच में स्थापित सम्बन्ध को कर्म कहते हैं। मूल रूप में जीव शुद्ध है।