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________________ अध्यात्मसार: 3 मूलम्-से बेमि जहा अणगारं उज्जुकडे नियायपडिवण्णे अकमायं कुव्वमाणे वियाहिए॥1/3/19 ___ मूलार्थ-हे शिष्य! अनगार-मुनि का जो वास्तविक स्वरूप है, वह मैं कहता हूँ। जो प्रबुद्ध पुरुषार्थ संयम का परिपालक है, मोक्षमार्ग पर गतिशील है और माया-छल-कपट आदि कषायों का त्यागी है या निश्छल एवं निष्कपट (शुद्ध) हृदय वाला है, वही अनगार-मुनि कहा जाता है। 1. उज्जुकडे-ऋजुकृत हृदय की अपेक्षा भाव। . 2. अमायं-आचरण की अपेक्षा क्रिया धर्म का प्रथम लक्षण है और प्रथम आवश्यक चरण है-ऋजुता, सरलता। : नियाय पडिवण्णे-मोक्ष-मार्ग पर गतिशील तीर्थंकरों द्वारा बाह्यचार एवं आभ्यंतर साधना को करने वाला। अणगार-जो अपने घर से रहित या फिर सभी घर उसके हैं। घर के दो अर्थ-एक बाहर का घर दूसरा शरीर, अर्थात् जो सभी के भीतर अपना स्वरूप देखता है। इन गुणों से युक्त है, वह मुनि है।। मूलम्-जाए सद्धाए निक्खंतो तमेव अणुपालिज्जा वियहित्ता विसोत्तिय॥1/3/20 मूलार्थ-जिस श्रद्धा एवं त्याग-वैराग्य भाव से घर का परित्याग किया है, उसी श्रद्धा के साथ सब तरह की शंकाओं से रहित होकर जीवन-पर्यन्त संयम का परिपालन करें। 1. श्रद्धा तत्त्व को जानने की अभिरुचि। 2. तत्त्व को जानने के लिए वीतरागियों ने जो मार्ग बताया है, उस मार्ग पर पूरी श्रद्धा एवं निश्शंक विश्वास। जैसे-तत्व को जानने की अभिरुचि अर्थात् मूल संत्य
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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