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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 2
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2, अप्येकः हनुमाभिन्द्यात् 2, अप्येकः ओष्ठमाभिन्द्यात् 2, अप्येकः दन्तमाभिन्द्यात् 2, अप्येकः जिह्वामाभिन्द्यात् 2, अप्येकः तालुमाभिन्द्यात् 2, अप्येकः गलमाभिंद्यात् 2, अप्येकः गलमोभिंद्यात् 2, अप्येकः गंडमाभिंद्यात् 2, अप्येकः कर्णमाभिंद्यात् 2, अप्येकः नासिकामाभिंद्यात् 2, अप्येकः अक्षिमाभिंद्यात् 2, अप्येकः भुवमाभिंद्यात् 2, अप्येकः ललाटमाभिंद्यात् 2, अप्येकः शिरसमाभिन्द्यात् 2, अप्येकः संप्रमारयेत्, अप्येकः अपद्रापयेत् 2 इत्थं शस्त्रं समारंभमाणस्य इत्येते आरंभाः परिज्ञाताः भवंति।
पदार्थ-तं-वह पृथ्वीकाय का समारंभ। से-उस को-आगामी काल में। अहिआए-अहितकर होता है। तं-वह पृथ्वीकाय का समारंभ। से-उसको। अबोहिए-अबोधिलाभ के लिए होता है। से-पृथ्वीकाय के समारंभ को पाप-रूप मानने वाला। तं-उस पृथ्वीकाय के आरंभ-समारंभ को। संबुज्झमाणे-अहितकर समझता हुआ। आयाणीयं-ग्रहण करने योग्य-सम्यग्-दर्शन और चारित्र में। समुछाय-सम्यक् प्रकार से उद्यत होकर। सोच्चा-सुनकर। खलु-निश्चय से। भगवओ-भगवान के समीप:या। अणगाराणां-अणगारों के समीप। इह-इस मनुष्य जन्म में। एगेसिं-किन्हीं एक प्रबुद्ध साधुओं को। णातं भवति-ज्ञात होता है कि-खलु-निश्चय से। एस-यही-पृथ्वीकाय का समारंभ । गंथे-अष्ट कर्म-बन्ध का कारण है। एस खलु मोहे-यह मोह का कारण है। एस खलु मारे-यह मृत्यु का कारण है। एस खलु णरए-यह नरक का कारण है। इच्छत्थं-आहार, आभूषण या प्रशंसा आदि के लिए। गड्ढिए-मूर्छित। लोए-लोक-प्राणी इस पृथ्वीकाय के जीवों की हिंसा करते हैं। जं-जिससे। इमं-इस पृथ्वीकाय को। विरूवरूवेहिं-नाना प्रकार के। सत्थेहिं-शस्त्रों से। पुढवीकाय संमारभ्भेणपृथ्वी-संबंधी क्रिया का आरम्भ करने से। पुढविसत्थं-पृथ्वी शस्त्र का। समारम्भमाणे-प्रयोग करते हुए। अण्णे-अन्य। अणेगरूवे-अनेक तरह के। पाणे-प्राणियों की। विहिंसइ-हिंसा करता है।
प्रश्न-एकेन्द्रिय जीव हिंसाजनित वेदना का अनुभव किस प्रकार करते
हैं?
उत्तर-सेबेमि-हे शिष्य! इसे मैं बताता हूं। अप्पेगे-जैसे कोई पुरुष।