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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 2
यों कहना चाहिए कि यहीं से ज्ञान का क्रमिक विकास होता है। जब आत्मा सूक्ष्म से बादर एकेन्द्रिय में आता है, तो उसके ज्ञान में कुछ उत्कर्ष होने लगता है। इसी तरह द्वीन्द्रिय, वीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय में और पञ्चेन्द्रिय में भी संज्ञी-असंज्ञी, पशु-पक्षी आदि की अनेक योनियों में परिभ्रमण करता हुआ आत्मा जब मनुष्य जीवन में पहुंचता है, तो उसके ज्ञान का अच्छा विकास हो जाता है। मनुष्य-जीवन विकास का केन्द्रबिन्दु है। अन्य योनियों में विकास का क्रम रहा हुआ है, परन्तु पूर्ण विकास का अवसर मनुष्य के अतिरिक्त किसी अन्य योनि में नहीं है; यहां तक कि पूर्ण विकास करने में देव भी सर्वथा असमर्थ हैं। मनुष्य ज्ञान के चरम उत्कर्ष को भी छू सकता है और अपकर्ष की चरम सीमा पर भी जा पहुंचता है। वह उत्कर्ष और अपकर्ष के मध्य में खड़ा है। उसके एक ओर उदयाचल है, तो दूसरी ओर अस्ताचल । जब मानव उत्कर्ष की ओर गतिशील होता हैं तो सर्वज्ञ, सर्वदर्शी बनकर सिद्धत्व को पा लेता है और जब पतन की ओर लुढ़कने लगता है, तो ठेठ निगोद में और उसमें भी सूक्ष्म निगोद में जा पहुंचता है और अनन्त काल तक अज्ञान अंधकार में भटकता-फिरता है, विकास, उत्कर्ष के अमूल्य अवसर को हाथ से खो देता है। अस्तु, प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त परियून शब्द औदयिक भाव की अधिकता की अपेक्षा से व्यवहृत हुआ है।
'दुस्संबोध' यह पद विषय-कषाय एवं मोह से युक्त तथा प्रशस्त ज्ञान से शून्य व्यक्तियों की अवस्था का परिसूचक है। 'दुस्संबोध' शब्द का सीधा-सा अर्थ है-जिस व्यक्ति को धर्म मार्ग में या सत्कार्य में लगाना दुष्कर है अथवा जिसे प्रतिबोधित न किया जा सके। प्रश्न किया जा सकता है कि आर्त को दुस्संबोध कहने का क्या अभिप्राय है और वह सरलता से क्यों नहीं समझता। इसका समाधान करने के लिए प्रस्तुत सूत्र में ‘अवियाणए-अविज्ञातकः' पद का प्रयोग किया है। ‘अवियाणए' का अर्थ है-विशिष्ट बोध या ज्ञान से रहित और यह हम प्रत्यक्ष में देखते हैं कि व्यावहारिक बोध से रहित मूर्ख किसी भी बात को जल्दी नहीं समझता। इसलिए विशिष्ट विचारकों ने ठीक ही कहा है कि मूों को समझाने के लिए समय का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि जिसमें बोध नहीं है, विवेक नहीं है, वह अपने हठ को छोड़कर जल्दी से सन्मार्ग पर नहीं आ सकता। टेढ़े लोहे को आग में तपाकर सीधा-सरल बनाया जा सकता है, क्योंकि उसमें लचक है, नम्रता है। परन्तु टेढ़े-मेढ़े लूंठ-लकड़ी के खम्भे को