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पारिभाषिक शब्दकोश
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शुक्ल ध्यान-राग-द्वेष से रहित होकर आत्मा की शुद्ध परिणति में रमण करना।
शोक संज्ञा-प्रिय वस्तु का वियोग और अप्रिय वस्तु का संयोग होने पर विलाप करना। ____ श्रमण-मोक्ष की साधना में श्रम करने वाले साधु । यह शब्द जैन, बौद्ध, आजीवक
और सांख्य मत के भिक्षुओं के लिए प्रयुक्त होता था। ___श्रावक-श्राविका-जैन धर्म के आचार को अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को एक आंशिक रूप से स्वीकार करने वाले सद् गृहस्थ (पुरुष और स्त्री)। 'श्रुत-तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट वाणी या आगम-शास्त्र।
श्रुत केवली-चौदह पूर्व या संपूर्ण आगमों का ज्ञाता। - श्रुत-ज्ञान-जैन आगमों का स्वाध्याय, श्रवण और चिन्तन-मनन करने से प्राप्त होने वाला ज्ञान।
श्रुत-ग्राही-श्रुत-आगमों को ग्रहण करने वाला। श्रुत धर्म-आगम में उपदिष्ट ज्ञान की साधना करना। श्रुतस्कन्ध-शास्त्र के विभाग (Volume)।
श्रेणिक-मगध-देश का सम्राट् भगवान महावीर का उपासक भक्त, जिसे बौद्ध साहित्य में बिम्बसार नाम से सम्बोधित किया गया है। ____ हरिकेशी मुनि-चण्डाल-शूद्र कुल में उत्पन्न मुनि, जो साधना के द्वारा देवों का भी वन्दनीय बन गया। उत्तराध्ययन के 12वें अध्ययन में इनके जीवन एवं साधना का वर्णन आता है।
हलुकर्मी-जल्दी प्रतिबोध पाने वाले व्यक्ति, जिनका संसार-परिभ्रमण स्वल्प रह गया है। हेय-त्यागने योग्य।
समाप्त