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पारिभाषिक शब्दकोश
· संज्ञा-ज्ञान।
संगम देव-एक अज्ञानी देव, जो भगवान महावीर को साधनापथ से भ्रष्ट करने आया और उन्हें 6 महीने तक विभिन्न कष्ट देता रहा, परन्तु अपने उद्देश्य में असफल रहा। भगवान को साधनापथ से नहीं गिरा सका।
संघयण-शरीर की आकृति। संठाण-शरीर की बनावट।
संयम-अपनी आत्मा को विषय-वासना, विकारों एवं पाप कार्यों से निवृत्त करना। श्रमण, मुनि या सन्त जीवन की साधना।
संलेखना-शरीर आदि पदार्थों एवं आहारादि पर ममत्व को हटाने की एक साधना, जिसमें साधक तप के द्वारा अपनी वृत्तियों का संकोच कर लेता है।
.संवृत्त योनि-जो उत्पत्ति-स्थान प्रच्छन्न है, ढका हुआ है। ___संवृत्त-विवृत्त-योनि-जो उत्पत्ति-स्थान कुछ आवृत और कुछ अनावृत-खुला
भी है। .. - संवेग-समभाव को अधिक वेग देना, अर्थात् समभाव की अभिवृद्धि।
संस्तारक-तृण या घास-फूस की शय्या।
संस्वेदज-पसीने से उत्पन्न होने वाले प्राणी, जूं, लीख आदि। • सांख्यदर्शन-भारतीय षट्-दर्शन में एक दर्शन, जिसके उपदेष्टा महात्मा कपिल
थे।
सांतरोत्तर-एक अन्तर-पट और दूसरा उत्तर-पट, अर्थात् एक धोती के स्थान पर पहनने का वस्त्र और दूसरा शरीर के अन्य भाग को ढकने का वस्त्र-चद्दर।
सचित्त-चित्त अर्थात् चेतना से युक्त। हरी वनस्पति, पानी, अग्नि आदि सचित्त पदार्थ कहलाते हैं।
सचित्ताचित्त-योनि-जो उत्पत्ति स्थान जीव एवं अजीव दोनों के प्रदेशों से युक्त हैं।
सचित्त-योनि-जो उत्पत्ति-स्थान जीव प्रदेशों से युक्त हैं। सन्धि-जोड़ना। दर्शन और चारित्र मोहनीय और ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय