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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
प्रशस्त-सुन्दर, सरल और निष्कटंक।
प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व-प्राण धारण करने के कारण ‘प्राणी', तीनों काल में रहने के कारण 'भूत', तीनों काल में जीवन (चेतना) युक्त होने से 'जीव',
और पर्यायों के परिवर्तित होने पर भी आत्म द्रव्य की सत्ता में अन्तर नहीं आने से 'सत्त्व' कहलाता है। ऐसे-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय को प्राणी, वनस्पति को भूत, पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य को जीव और पृथ्वी, पानी, वायु और अग्नि काय को सत्त्व कहते हैं।
प्रान्त-निकृष्ट खाना एवं तृण आदि की तुच्छ शय्या। प्रासुक-हरी-सब्जी, बीज एवं जीव-जन्तु आदि से रहित पदार्थ। पृथ्वीकाय-जिन प्राणियों ने पृथ्वी का शरीर धारण कर रखा है। बन्धमोक्ष-आत्मा का कर्मों के साथ बंधन और उनसे (कर्मों से) सर्वथा मुक्त होना। बहुश्रुत-शास्त्र, आगमों के रहस्य को जानने वाला। बद्ध-बँधे हुए। बाल-अज्ञानी।
बाल-संन्यासी-अज्ञान तप करने वाला संन्यासी साधक, जो कष्ट तो सह रहा था, परन्तु साधना के यथार्थ ज्ञान से शून्य था।
बाहुबली-भगवान ऋषभदेव का द्वितीय पुत्र, भरत चक्रवर्ती का छोटा भाई। बौद्ध दर्शन-तथागत बुद्ध के द्वारा उपदिष्ट सिद्धान्त। ब्रह्म-ईश्वर, परमात्मा।
बृहत्कल्प भाष्य-छेद सूत्रों में से एक सूत्र (शास्त्र) और उस पर प्राकृत पद्य में विस्तृत विवेचन। ___ मांडले के दोष-आहार करते समय साधु द्वारा लगाए जाने वाले दोष-जैसे मूर्छा भाव से आहार की प्रशंसा करके उसे खाना, उसकी निन्दा करते हुए खाना आदि।
- मतिज्ञान-इन्द्रिय और मन या बुद्धि की सहायता से पदार्थों का यथार्थ बोध करना।