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________________ पूर्वभव में मैंने महाव्रतों की आराधना जिस रूप में की, उसी प्रकार अप्रमत्त होकर आत्मसाधना में संलग्न रहना चाहिए, इसी में मेरा कल्याण है। उस जातिस्मरण ज्ञान के सहयोग से उस प्रमदवन में बाह्य आभ्यन्तर परिग्रह का सर्वथा परित्याग कर तेतलीपुत्र स्वयमेव दीक्षित होकर, जहाँ उस वन में अशोक वृक्ष था, वहाँ पहुंचे और शिलापट्टक पर बैठकर समाधि में तल्लीन हो गए। फिर उस जातिस्मरण ज्ञान के द्वारा अनुप्रेक्षा करते हुए पूर्वभव में कृत अध्ययन आदि का पुनः चिन्तन करने लगे। इस प्रकार विचार करते-करते अंगसूत्रों तथा चौदह पूर्वो का ज्ञान उत्पन्न हो गया, तब उस श्रुतज्ञान के द्वारा आत्मा जगमगा उठी, कर्ममल को सर्वथा भस्मसात् करने वाले अपूर्वकरण में प्रविष्ट हुए, घनघाति कर्मों को प्रनष्ट करके तेरहवें गुणस्थान में प्रवेश करते ही केवल ज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हुआ। जातिस्मरण ज्ञान से संयम ग्रहण किया, संयम से चौदह पूर्वो का ज्ञान उत्पन्न हुआ, उससे क्षपकश्रेणी में आरूढ़ हुए और तेतलीपुत्र को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इस प्रकार कारण कार्य बनता है। चौदह.पूर्वो का ज्ञान उपर्युक्त ढंग से भी हो सकता है। पद परिभाषा - प्रत्यक्ष प्रमाण में जितना सुस्पष्ट और विशद केवलज्ञान है, उतना अवधि और मनः पर्यवज्ञान नहीं। परोक्ष प्रमाण में श्रुतज्ञान जितना विशद है, मतिज्ञान उतना नहीं। श्रुतज्ञान का अन्तर्भाव पूर्णतया द्वादशांग गणिपिटक में हो जाता है, उससे कोई भी श्रुतज्ञान बाहर नहीं रह जाता है। आगमों में जो पद गणना की गई है, उसके विषय में श्वेताम्बर और दिगम्बरों में मतभेद है, यदि हम अनेकान्तवाद की साक्षी से काम लें, तो वास्तव में मतभेद है ही नहीं, विचारधारा को न समझने से ही मत-भेद प्रतीत होता है। पद शब्द अनेकार्थक है, जैसे कि अर्थपद, प्रमाणपद और मध्यमपद। यहां संक्षेप रूप से इनकी व्याख्या की जाती है, जैसे कि-व्याकरण में 'सुप्तिङन्तं पदम्', अर्थात् विभक्ति सहित शब्द को पद कहते हैं। धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमंसन्ति, जस्स धम्मे सया मणो॥ इस गाथा में अव्यय सहित 14 पद हैं, इनको भी पद कहते हैं। विहूयरयमला, पहीणजरमरणा, कित्तिय-वंदिय-महिया, उज्जोयगरे' इत्यादि शब्द समासान्त पद कहलाते हैं। जहां अर्थ की उपलब्धि हो उसे भी पद कहते हैं, जैसे कि "कहनु कुजा सामण्णं जो कामे न निवारए" इस पूरे वाक्य से अर्थ की उपलब्धि होती है अर्थात् यत्रार्थोपलब्धिस्तत्पदम्, इस दृष्टि से जहां अर्थज्ञान हो, वह पद कहलाता है। वाक्यों के समूह को भी पद कहते हैं, जैसे कि पैराग्राफ। जिसमें द्रव्यानुयोग का विषय विभाजित हो, उसमें से किसी एक भाग को 1. ज्ञाताधर्म कथा, 14वां अध्ययन *79
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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