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८. विष्णु-प्राप्त हुए शरीर को व्याप्त करने से उसे विष्णु भी कहते हैं।
९. स्वयंभू-स्वतः ही आत्मा का अस्तित्व है, परत: नहीं। . १०. शरीरी-संसार अवस्था में सूक्ष्म या स्थूल शरीर को धारण करने से इसे शरीरी या देही कहा जाता है।
११. मानव-मनु ज्ञान को कहते हैं, ज्ञान सहित जन्मे हुए को मानव अथवा मा निषेधक है, नव का अर्थ होता है नवीन अर्थात् जो नवीन नहीं है बल्कि अनादि है उसे मानव कहते हैं।
१२. सत्त्व-जो परिग्रह में आसक्त रहता है अथवा जो पहले था, अब है, अनागत में रहेगा उसे सत्त्व भी कहते हैं।
१३. जन्तु-आत्मा कर्मों के योग से चार गति में उत्पन्न होता रहता है, इसलिए उसे जन्तु कहा है।
१४. मानी-इसमें मान कषाय पाई जाती है अथवा यह स्वाभिमानी है इस कारण से मानी कहा है।
१५. मायी यह स्वार्थ पूर्ति के हेतु माया-कपट करता है अतः उसे मायी कहते हैं।
१६. योगी-मन, वचन और काय के रूप में व्यापार (क्रिया) करता है इस हेतु से योगी कहा है।
१७. संकुट-जब अतिसूक्ष्म शरीर को धारण करता है, तब अपने प्रदेशों को संकुचित कर लेता है, इस दृष्टि से संकुट कहा है। ..
१८. असंकुट-केवली समुद्घात के समय समस्त लोकाकाश को अपने प्रदेशों से व्याप्त कर लेता है अत: असंकुट भी है।
१९. क्षेत्रज्ञ-अपने स्वरूप को तथा लोकालोक को जानने से क्षेत्रज्ञ कहते हैं। २०. अन्तरात्मा-आठ कर्मों के भीतर रहने से अन्तरात्मा भी कहते हैं।
जीवो कत्ता य वत्ता य पाणी भोत्ता य पोग्गलो। वेदो विण्हू सयंभू य सरीरी तह माणवो ॥१॥ सत्ता जन्तु य माणी य माई जोगी य संकुडो।
असंकुडो य खेत्तण्णू अन्तरप्पा तहेव य ॥२॥ आत्मा के विषय में पूर्ण विवरण इस पूर्व में गर्भित है। .
1. धवला गाथा 82-83