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छाया-इत्येतद् द्वादशांगगणिपिटकंन कदाचिन्नासीत्, न कदाचिद् न भवति, न कदाचिन्न भविष्यति। अभूच्च, भवति च, भविष्यति च। ध्रुवं, नियतं, शाश्वतम्, अक्षयम्, अव्ययम्, अवस्थितम्, नित्यम्।
स यथानामकः पञ्चास्तिकायो न कदाचिन्नासीत्, न कदाचिन्नास्ति, न कदाचिन्न भविष्यति।अभूच्च, भवति च, भविष्यति च। ध्रुवः, नियतः,शाश्वतः, अक्षयः, अव्ययः, अवस्थितः, नित्यः।
एवमेव द्वादशांगं गणिपिटकंन कदाचिन्नासीत्, न कदाचिन्नास्ति, न कदाचिन्न भविष्यति।अभूच्च, भवति च, भविष्यति च। ध्रुव, नियतं,शाश्वतम्, अक्षयम्, अव्ययम् अवस्थितं, नित्यम्।
तत्समासतश्चतुर्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः। तत्रद्रव्यतः श्रुतज्ञानी-उपयुक्तः सर्वद्रव्याणि जानाति, पश्यति। क्षेत्रतः श्रुतज्ञानी-उपयुक्तः सर्वं क्षेत्रं जानाति, पश्यति।। कालतः श्रुतज्ञानी-उपयुक्तः सर्वं कालं जानाति, पश्यति। भावतः श्रुतज्ञानी-उपयुक्तः सर्वान् भावान् जानाति, पश्यति ॥ सूत्र ५७॥ .
भावार्थ-इस प्रकार यह द्वादशांग-गणिपिटक न कदाचित् नहीं था अर्थात् सदैवकाल था, न वर्तमान काल में नहीं है अर्थात् सर्वदा रहता है, न कदाचित् न होगा अर्थात् भविष्य में सदा होगा। भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और भविष्य काल में रहेगा। यह मेरु आदिवत् ध्रुव है, जीवादिवत् नियत है, तथा पञ्चास्तिकायलोकवत् नियत है, गंगा सिन्धु के प्रवाहवत् शाश्वत है, गंगा-सिन्धु के मूलस्रोतवत् अक्षय है, मानुषोत्तर पर्वत के बाहर समुद्रवत् अव्यय है, जम्बूद्वीपवत् सदैव काल अपने प्रमाण में अवस्थित है, आकाशवत् नित्य है।
जैसे पञ्चास्तिकाय न कदाचित् नहीं थी, न कदाचित् नहीं है, न कदाचित् नहीं होगी, ऐसा नहीं है अर्थात् सर्वदा काल-भूत में थी, वर्तमान में है, भविष्यत् में रहेगी। ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है, नित्य है। .. ___ इसी प्रकार यह द्वादशांगरूप गणिपिटक-कभी न था, वर्तमान में नहीं है, भविष्य में नहीं होगा, ऐसा नहीं है। भूत में था, अब है और आगे भी रहेगा। यह ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है। ___ वह संक्षेप में चार प्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से, इनमें
द्रव्य से श्रुतज्ञानी-उपयोग से सब द्रव्यों को जानता और देखता है। क्षेत्र से श्रुतज्ञानी-उपयोग से सब क्षेत्र को जानता और देखता है।
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