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________________ अनन्तरम्, ६. परम्परम्, ७. आसानम्, ८. संयूथम्, ९. सम्भिन्नम्, १०. यथावादम्, ११. स्वस्तिकावर्त्तम्, १२. नन्दावर्त्तम्, १३. बहुलम्, १४. पृष्टापृष्टम्, १५. व्यावर्त्तम्, १६. एवम्भूतम्, १७.द्विकावर्त्तम्, १८. वर्तमानपदम्, १९. समभिरूढम्, २०. सर्वतोभद्रम्, २१. प्रशिष्यम्, २२. दुष्प्रतिग्रहम्। इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि छिन्नच्छेदनयिकानि स्वसूत्रपरिपाट्या, इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि अच्छिन्नच्छेदनयकानि आजीविक-सूत्रपरिपाट्या, इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि त्रिक-नयिकानि त्रैराशिक-सूत्र-परिपाट्या, इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि चतुष्क-नयिकानि स्वसूत्रपरिपाट्या। एवमेव सपूर्वापरेणाऽष्टाशीतिः सूत्राणि भवन्तीत्याख्यातम्, तान्येतानि सूत्राणि। भावार्थ-शिष्य ने पूछा-भगवन् ! वह सूत्ररूप दृष्टिवाद कितने प्रकार का है ? आचार्य ने उत्तर दिया-सूत्ररूप दृष्टिवाद २२ प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे १. ऋजुसूत्र, २. परिणतापरिणत, ३. बहुभंगिक, ४. विजयचरित, ५. अनन्तर, ६. परम्पर, ७. आसान, ८. संयूथ, ९. सम्भिन्न, १०. यथावाद, ११. स्वस्तिकावर्त्त, १२. नन्दावर्त्त, १३. बहुल, १४. पृष्टापृष्ट, १५. व्यावर्त्त, १६. एवंभूत, १७. द्विकावर्त्त, १८. वर्तमानपद, १९. समभिरूढ, २०. सर्वतोभद्र, २१. प्रशिष्य, २२. दुष्प्रतिग्रह। ये २२ सूत्र छिन्नच्छेदन-नय वाले, स्वसमय सूत्र परिपाटी अर्थात् स्वदर्शन की वक्तव्यता के आश्रित हैं। ये ही २२ सूत्र आजीवक गोशालक के दर्शन की दृष्टि से अच्छिन्नच्छेद-नय वाले हैं। इसी प्रकार ये ही सूत्र त्रैराशिक सूत्र परिपाटी से तीन नय वाले हैं और ये ही २२ सूत्र स्वसमय-सिद्धान्त की दृष्टि से चतुष्कनय वाले हैं। इस प्रकार पूर्वापर सर्व मिलाकर अट्ठासी सूत्र होते हैं। इस प्रकार यह कथन तीर्थंकर व गणधरों ने किया है। यह सूत्ररूप दृष्टिवाद का वर्णन हुआ। टीका-इस सूत्र में अट्ठासी प्रकार के सूत्रों का वर्णन किया है और साथ ही इन में सर्वद्रव्य सर्वपर्याय, सर्वनय और सर्व भंग विकल्प नियम आदि दिखलाए गए हैं। जो अर्थों की सूचना करे वे सूत्र कहलाते हैं। इस विषय में वृत्तिकार भी लिखते हैं-“अथ कानि सूत्राणि? पूर्वस्य पूर्वगतसूत्रार्थस्य सूचनात् सूत्राणि सर्वद्रव्याणां सर्वपर्यायानां सर्वभंगविकल्पानां प्रदर्शकानि, तथा चोक्तं चूर्णिकृता .. ताणि य सुत्ताइं सव्वदव्वाण, सव्वपज्जवाण, सव्वनयाण सव्वभंगविकप्पाण य पदंसणाणि, सव्वस्स पुव्वगयस्स सुयस्स अत्थस्स य सूयग त्ति सुयणात्ताउ (वा) सुया भणिया जहाभिहाणत्था इति।" वृत्तिकार और चूर्णिकार के विचार इस विषय में एक ही हैं। उक्त सूत्र में, 22 सूत्र छिन्नच्छेद नय के मत से स्वसिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले हैं और ये ही 22 सूत्र अछिन्नच्छेद नय की दृष्टि से अबन्धक, त्रैराशिक, और नियतिवाद का वर्णन करने वाले हैं।
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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