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व्याख्यायते।" वृत्ति का सारांश है-यद्यपि दृष्टिवाद का प्रायः व्यवच्छेद हो गया है, तदपि श्रुतिपरंपरा से उसकी अंश मात्र व्याख्या की जाती है। सम्पूर्ण दृष्टिवाद पांच भागों में विभक्त है अथवा उसके पांच अध्ययन हैं, जैसे कि परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। इनमें सबसे पहले योग्यता प्राप्त करने के लिए परिकर्म का वर्णन किया गया है, जैसे
१. परिकर्म मूलम्-से किं तं परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा
१. सिद्धसेणिआपरिकम्मे, २. मणुस्ससेणिआपरिकम्मे, ३. पुट्ठसेणिआपरिकम्मे, ४. ओगाढसेणिआपरिकम्मे, ५. उवसंपज्जणसेणिआपरिकम्मे, ६. विप्पजहणसेणिआपरिकम्मे, ७. चुआचुअसेणिआपरिकम्मे।
छाया-अथ किं तत् परिकर्म? परिकर्म सप्तविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा
१. सिद्धश्रेणिका-परिकर्म, २. मनुष्यश्रेणिका-परिकर्म, ३. पृष्टश्रेणिका-परिकर्म, ४. अवगाढश्रेणिका-परिकर्म, ५. उपसम्पादनश्रेणिका-परिकर्म, ६. विप्रजहत्श्रेणिकापरिकर्म, ७. च्युताच्युतश्रेणिका-परिकर्म।
भावार्थ-वह परिकर्म कितने प्रकार का है ? परिकर्म सात प्रकार है, जैसे-१. सिद्ध-श्रेणिका परिकर्म, २. मनुष्य-श्रेणिका परिकर्म, ३. पृष्ट-श्रेणिका परिकर्म, ४. अवगाढ-श्रेणिका परिकर्म, ५. उपसम्पादनश्रेणिका-परिकर्म, ६. विप्रहजत्-श्रेणिकापरिकर्म, ७. च्युताच्युतश्रेणिका-परिकर्म। .
टीका-गणितशास्त्र में संकलना आदि 16 परिकर्म कथन किए गए हैं, उनका अध्ययन करने से जैसे शेष गणितशास्त्र के विषय को ग्रहण करने की योग्यता हो जाती है, ठीक इसी प्रकार परिकर्म के अध्ययन करने से दृष्टिवाद श्रुत के शेष सूत्रादि ग्रहण करने की योग्यता हो जाती है, तदनन्तर दृष्टिवाद के अन्त:पाति सभी विषय सुगम्य हो जाते हैं, दृष्टिवाद का प्रवेशद्वार परिकर्म है। इस विषय में चूर्णिकार के शब्द निम्नलिखित हैं____ “परिकम्मेति योग्यताकरणं, जह गणियस्स सोलस परिकम्मा, तग्गहियसुत्तत्थो सेस गणियस्स जोग्गो भवइ, एवं गहियपरिकम्मसुत्तत्थो सेससुत्ताई दिट्ठिवायस्स जोग्गो भवइ त्ति।"
वह परिकर्म मूलतः सात प्रकार का है और मातृकापद आदि के उत्तर भेदों की अपेक्षा से 83 प्रकार का है। पहले और दूसरे परिकर्म के 14-14 भेद और शेष पांच परिकर्म के 11-11 भेद होते हैं। इस प्रकार परिकर्म के कुल 83 भेद हो जाते हैं। वह परिकर्म मूल और उत्तर भेदों सहित व्यवच्छिन्न हो चुका है। कतिपय प्राचीन प्रतियों में 'पाढो आमासपयाई' के स्थान पर 'पाढो आगासपयाई' यह
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